दर्द है किसी के जाने का
डर है कोई छूट जाने का
लिख दी तक़दीर कुदरत ने
सब कुछ लूट जाने को
तन्हाई इतनी है कि शब्द कह नहीं पाता
हर लम्हे को सोच।। आँखों से लहू झलक जाता
करामात है कुदरत की ज़िन्दगी और मौत
डर के अन्धकार में उसका नाम ही अलख ज्योत
जब कभी उसकी चाहत, मेरी बेचैनी बढाती है
टीस उठती है सीने में, मायूसी का दौर है लाती
02 मार्च 2009 के डायरी का पन्ना।।
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