सोमवार, 26 जनवरी 2015

कुछ ट्वीट्स


इतनी समझता है गर  दिल तुम्हारी बातें
कम्बखत मेरे दिल को भी समझाना
तुम से मिलने की जिद्द किये बैठा है

कसूर मेरा इतना
जिंद से ज्यादा चाहा तुझे

मकान बन कर रह गया घर मेरा
जब से रोटी परदेश में मिलने लगी है।।

इंसान का तो मुकद्दर है परेशानी
कभी दफ्तर तो कभी घर की कहानी

यूँ कातिल नजरो से क्यों देखते हो
किसे क़त्ल करने का इरादा है

जाता हूँ पर लौट आने का है वादा
पहले से बेहतर वक़्त लाने का है इरादा

जिसके दिल में भरा हो प्यार
उसके लिए उत्तम ये संसार
जिसके दिल में हो विकार
उसका जीना भी है बेकार

भूला में(इंसान) जीना , जीत की राह में
खो दिया अपनों को, पैसे की आह में

कहती है तू उड़ना सीख ले
पर मुझे पर क़तर जाने का डर सताता है

काश और विकाश के बीच पीस गया हूँ
नाम विकाश, काश बन रह गया हूँ

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