दुसरो पर कीचड़ फैंकने वाले ये नहीं सोचते की उनके हाथ भी कीचड़ से सं चुके है
मगर उनको परवाह नहीं होती क्योंकि वो बुरी तरह से उस कीचड़ में धंस चुके होते है उनसे कोई सफेदपोश बर्दाश्त नहीं होता।। इसलिए वो अपने कुंठित मन का सारा कीचड़ उस सफेदपोश पर डालने की कोशिश में रहते है।। मगर वो सफेदपोश इतना संवेदनशील होता है कि दुखी मन से उस कीचड़ से बचने के रस्ते खोजता है।। क्योंकि उसका लक्ष्य एक स्वस्थ व्यवस्था में जीने का है।। कीचड़ में तो रहना कोई मुश्किल नहीं।। संघर्ष तो स्वच्छता के लिए करना पड़ता है।।
Sochta hoon ki har pal likhoon par likhne baithta hoon to wo pal hi gujar jata hai
शनिवार, 24 जनवरी 2015
व्यवस्था का दुष्चक्र
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