कलम पकड़ी है हाथ में। खंजर ना समझना।।
क़त्ल करने दिल का आये है। कंजर ना समझना।।
काम होते आवारा के यूँ ख़त और पैग़ाम लिखना
हम तो ईमेल करते है जाहिल और अनपढ़ ना कहना
कट जाता है मेरा वक़्त। जब तेरी याद आती है
गर थम जाते है लम्हे।। जब तू सामने आता है
पीड़ मेरे मन की। तेरे मन को भी रुलाएगी
तू आये या आए।। तेरी याद हर वक़्त सताएगी।।
दोस्त बनाने के नाम पर हम ने भीड़ जुटायी है
एक तेरी दोस्ती थी जो तन्हा और संज़ीदगी लायी है
क्यों लिखते हो ऐसा। कोई समझ नहीं पाता
दर्द से भर हर लफ्ज़। हर किसी को है रुलाता
10 दिसम्बर 2008 का पन्ना
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