गुरुवार, 22 जनवरी 2015

ओह रब्बा ।। मेहर कर।।


ओह रब्बा

इतना कमजोर दिल मेरे किस काम का
तूने जुबां देकर पत्थर सी
मोम का दिल क्यों मेरे नाम किया

बिन आंसुओ के दर्द ने
सरेआम बदनाम किया

रोता हूँ हर तीखे शब्द की चोट से
कोई वाकिफ नहीं मेरे इस रोग से

ओह रब्बा

मेरी दुआ इतनी कबूल कर
सीना निकाल मेरे जिस्म से
या इस जिस्म को ही धुल कर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कड़वे शब्द बोलता हूँ