ओह रब्बा
इतना कमजोर दिल मेरे किस काम का
तूने जुबां देकर पत्थर सी
मोम का दिल क्यों मेरे नाम किया
बिन आंसुओ के दर्द ने
सरेआम बदनाम किया
रोता हूँ हर तीखे शब्द की चोट से
कोई वाकिफ नहीं मेरे इस रोग से
ओह रब्बा
मेरी दुआ इतनी कबूल कर
सीना निकाल मेरे जिस्म से
या इस जिस्म को ही धुल कर
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