हुस्न की बारिश, मेरा बदन भिगो गयी
मेरी अंखिया उसके दामन में खो गयी
लिपटी सांसो से थी उसकी गर्म आहें
वो नागिन सा बल खा गया
जब मेरे लब छु गए उसके होंठो को
निढाल हो गया जिस्म, कायनात का करिश्मा देख
घूरती रही शराफत, ना जाने कब पलकों से गुस्ताखी हो गई
मलमल सा हुआ बदन, सोखियों के नज़ारे में डूब गया
कभी प्यासी थी ज़मीन जहाँ आज पानी वहां खूब गया
निचोड़ दिया बूँद बूँद अरमानों को उसके कदमो पर
वो भीग गया इस तरह, बरसो से सावन का हो प्यासा
बिखर गई, मोतियो सी उसकी लिपटी चादर पर
समेट गया वो अपनी बाँहों में, कोई खज़ाना मिला हो रूह का
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