शनिवार, 2 मई 2015

बचपन में ठूँठे आम से जो दिल लगाया

ठूँठे आम से दोस्ती कर ली बचपन में
सोचा था की, इसका भी वक़्त आएगा
कुछ नयी कोंपलों से, आँगन खिल जायेगा

सींचती रही में उसे अपने त्याग और बलिदान से
बूँद बूँद कर बहाया, पसीना अपना निचोड़ दिया
उस ठूँठे आम की खातिर, रसीला जग छोड़ दिया

हर मौसम उसका इन्तजार करती थी भूखी प्यासी
वो हर वक़्त बेरुखी और नीरसता भरा जीवन लाया
मेने अपने बचपन के प्यार से, इस कदर धोखा खाया

आज खोखली हो गयी है ठूंठे आम की असलियत भी
भरा था दीमक से जो, बस छलावा जो है दिखाया
अब ना भेद सकेगा ह्रदय, अपना और पराया

अब तो ठूँठे आम संग या तो अरमान जलाउंगी
हो सका तो, अकेले ही जीवन पथ पर कदम उठाऊंगी
बस रहम कर देना , एक तुम ठूँठे आम
ना करना मुझे किसी गली मोहल्ले बदनाम

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