क्यों एक दिन की जुदाई अरसा हो गयी
बरसो की मुलाकात, पल में पलछिन हो गयी
हम देखते रहे, वो ओझल हो गए हमसे
मुट्ठी से फिसल गए हो रेत के जैसे
अब उनके जाने का दर्द सहे कैसे
हो जख्मी सीना, हँसते हुए रहे कैसे
चंद यादें रखी है उनकी, सीने से लगाकर
बाकि तो संग ले गया वो, रिश्ता तोड़कर
अब और कहीं दिल ना लग पायेगा
बहुत देख लिया, बेव्फा से दिल जोड़कर
अर्ज मेरी हो सके तो अपने मासूम दिल को बताना
दिल हो बेशक पत्थर, पर किसी पत्थर से ना दिल लगाना
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें