रविवार, 3 मई 2015

प्यार की परिभाषा

प्यार एक जज्बा है
प्यार एक हुनर है
जो बंधन में बंधे वो डोर ही प्यार है
प्यार से बनते है रिश्ते हजार
इसमें रंगो की लय, नाजुक भय
इक आकर है जो परमात्मा है
उसका एक अंश प्यार है
दो दिलो में पलने वाला मासूम इजहार है
इसमें बंधा अलग जज्बा ही सब को स्वीकार है
कहता है हर पल, झरना, पवन, चमन सब में बसा
अनमोल उपहार है
प्यार को जितना फैलाये
उतना फैले, ऐसा व्यापार है
इसमें ना होता धोखा, ना घाटा
ऐसा व्यवहार है
जीवन प्यार ना होता
जीवन बेजान मूर्त समान है
प्यार का तो आकार निराकार है
प्यार सब के दिलों में
इसका अलग ही आकार है जो
रचा कण कण में
जिसमे है एक ठंडा एहसास वो प्यार है
सकूँ पहुंचाए दिलो को, करता एक दूजे को बेकरार है
फिर भुला बैर को
'कहो न प्यार है'

ये पंक्तिया आठवी कक्षा में लिखी थी शायद अच्छी नहीं पर उस वक़्त के दिमाग से बहुत सटीक है

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