लिपट गया मेरा दिल जो तेरी रूह से
अलग होता नहीं, रोज जमाना हँसता है
अक्सर जिद्द के दामन में ही दर्द बसता है
छोड़ ये सकता नहीं, निभाना मुझ से जाना नहीं
ये पल पल तड़पेगा, बेबसी भरा दिल धड़केगा
जाने क्यों जख्म नासूर बनाता है
पत्थर होने को कहा था इसे,
उसकी साँसों की तपिश
पत्थर को मोम बना गई
गर्मजोशी से आते है वो मेरे आशियाने में
डर के मारे, अक्सर नजरें फेर लेता हूँ
उस से कहीं ज्यादा, खुद को चोट देता हूँ
हिम्मत कर कह भी दूं हाल ए दिल
उस गैर से संभाला ना जाएगा
उसका अतीत, उसको रुलाएगा
दो धाराओ में जिंदगी बह सकती नहीं.....................
#साहस टूट गया लिखने को, हम पत्थर है बस दिखने को
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें