रूठ गयी जमीन मुझ से
खिसक गयी पैरो तले से
धँसता गया हूँ दर्द के कुंए में
ओझल हो गया हूँ तन्हाई के धुंए में
रात दिन कशमकश में डूबा है मन
मछली सा तड़पता है मोरा बदन
आंसुओ को भी इजाजत नहीं बहने को
दर्द ने मेरा दिल घरोंदा बनाया है रहने को
परस्पर मेल खाती नहीं, दिल और दिमाग की
जीत की खबर नहीं, हार हुयी मेरे विश्वास की
हो सके तो कुछ लिहाज रखना मेरे आखिरी श्वास की
तू करीब न आना, कहीं डोर बंध ना जाये टूटते सांस की
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मासूमियत भरे हसीं चेहरे पे मत पिघल जाना
शौक है इनका, दिल में आग लगा कर निकल जाना
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