शनिवार, 16 मई 2015

गीत:- कोई खुशबू तेरे जिस्म की-2

कोई खुशबू तेरे जिस्म की
मुझे क्यों खींच लाती है-2

मेरी धड़कनो पे होकर सवार-2
लहू संग बहक जाती है
कोई खुशबू तेरे जिस्म की-2

बावरी हो अंखिया-3
तेरी प्यासी हो जाती है
जो ना देखे तुझे तो
बरस कर सैलाब लाती है
कोई खुशबू तेरे जिस्म की-2

ठंडी आहें बनकर-2
रूह को तपिश में झुलसा जाती है
आग का समंदर, लहर उठा लाती है
कोई खुशबू तेरे जिस्म की-2

पाजेबो  की झंकार, सोलह शिंगार
उठते यौवन का, मीठा सा खुमार
मदहोशी बन, दिल और जान को
बेसुध् बनाता है
कोई खुशबू तेरे जिस्म की-2

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