सोमवार, 25 मई 2015

भुला दें, कहीं खो ना जाऊ

उमड़ उमड़ अरमान जगाये जाता है
भूले न भूले भुलाये जाता है वो चेहरा

मेरे जहन का कुछ इस कदर है दिल पर पहरा
जो भूल भी जाऊ, नश्तर सा चुभ गया है वो गहरा

होंठो से दूर वो जाता नहीं, शब्द बन झरता है
खलिश है जो दिल की, दर्द बन कर भरता है

जाने क्यों, मेरी जान का प्यासा बन गया है
एक तस्वीर बन , आँखों जे सामने तन गया है

कविता बन मेरे काव्या का, बसने को जी चाहता है
तोड़ कर बंधन लाज के, शब्द रस में डूब चाहता है

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कड़वे शब्द बोलता हूँ