दो जिंदगी जीते है हम
एक तो जो फ़र्ज़ के लिए बनाई इस दुनिया ने
इसके लिए ये फर्ज
उसके लिए वो फर्ज
दूसरी जिंदगी जो हम खुद बुनते है
बाहर अन्जान लोगों से मिलते है
दोस्त और दुश्मन अपने विवेक से बनाते है
पहली जिंदगी हम चाह कर भी नहीं छोड़ सकते
इस कदर थोप दी हमारी मानसिकता पर
और दूसरी जिंदगी हम छोड़ना नहीं चाहते
इस का अच्छा पहलु यह भी है जो मंन में है
जुबां पर नहीं होता मगर चेहरा बोल देता है
पहली जिंदगी में जुबाँ वो सब बोलती है
जो दिल में कभी नहीं होता पर
मानसिकता हो जाती है जहर उगलने की
बड़ी मुश्किल वाली संस्कृति है ये
शिक्षा का भी असर नहीं हुआ इन पर
बस ढोये जा रहे है जिंदगी
दो विपरीत दिशा वाले पहियो पर
#लगे रहिये मेरे ब्लॉग को सीरियस ना लीजिये॥ पीकू देखकर सच याद आ गया थोडा सा
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