शुक्रवार, 15 मई 2015

मतलब का संसार मित्र ना कोई शत्रु

कुछ इस तरह मतलब का हो गया संसार
बस एक मतलब है जरूरी ना की नफरत ना प्यार

अँधा हो गया है इंसान , चमक की दौड़ में
फीके पड़ गए रिश्ते, ऊँचा उठने की होड़ में

साँसों की जरूरत से ज्यादा, जिस्म की ख्वाहिशें
पेट की भूख से अधिक, इंसान की फरमाइशें

भरोसा बन गया है, ऊंचाइयों का पायदान
बेशक अंदर से टूट गया हो वो इंसान

चुपके जो तन्हाई है सीने में, सिक्को की खनक से दबा दी
जो ज़मीर करता था वसूलो की बातें, आज उसकी रूह रुला दी

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