मेरे दफतर की कुछ ऐसी है कहानी
मानसिक रोगियो की भरमार है
आज कुछ फ़ोन नहीं उठाये की
उस अपने ने अपनों संग
मनगढ़ंत किस्से रच डाले
विकृत दिमाग अक्सर जहर ही फैलाता है
फिर उसके कुछ बिरादर भी उसकी तरफदारी करते है
बस ज़िन्दगी शायद इनसे लड़ने का नाम रह गयी
क़सूर बन गयी मेरी सादगी, हर कोई छलावा पसंद है
बस कूटनीति का दौर है इंसानियत के द्वार तो बंद है
अपनी कमजोरी को छिपाने को
ढूंढते बहाने दुसरो को जलाने को
ख़ुद फुरसत नहीं ख़ुशामद से
होंसला दे रब्बा, मुझे डर कहीं विनाशक ना बन जाऊ
सृष्टि नाम है जीवन का, कहीं नफ़रत से ना मर जाऊ
क्या करूँ कुछ समझ नहीं आते
नफ़रत भरे दौर में
मेरी मत धूमिल हो गयी
इस शौर से
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