शनिवार, 16 मई 2015

अर्क दर्द का

गणित कुछ ऐसा है कुदरत का
जब गरीब को अचानक मध्यम वर्ग की उन्नति
मध्यम वर्ग को अमिर वर्ग की उन्नति
और अमिर को बेइंतेहा दौलत मिल जाए
तो उसके पाँव जमीन से उठना स्वाभाविक है

ऐसा कुछ मेरे दो सहकर्मियों के साथ हुआ
उनको लगता है कि कुछ अच्छे दिन क्या आये उनके
उनकी बेहतर रणनीति का कमाल है
वो वक़्त की मार से बेखबर हो गए है
जिनके साथ कदम से कदम मिलाते थे
आज उन्हें बौने नजर आने लगे है

उन्हें मालूम नहीं, उनकी बदतमीजी
हमे तो दो चार दिन तक़लीफ़ देगी
मगर उनके लिए जीवन भर घातक सिद्ध होगी
जब भी आदमी अपने कद से ऊपर उठा है
वो जमीन पर औंधे मुँह गिरा है

प्रार्थना है मेरी प्रभु से अक्सर जो में खुद के लिए भी करता हूँ
कि हमे सदबुद्धि बख्शे, बाकि सब तो हम अपनी मेहनत स हासिल कर लेंगे

उम्मीद है आने वाले दिन से
में अपना व्यवहार सौहार्द पूर्ण रखूंगा
क्योंकि जिसके लिए परेशान था
जब उसे ही परेशानी नहीं
फिर मुझे भी हर लम्हा उत्साह और उल्लास से जीना चाहिए

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कड़वे शब्द बोलता हूँ