सोमवार, 2 मार्च 2015

वो किताब हूँ में

कभी किसी पुस्तकालय जाना
चारो तरफ नजर घुमाना
चमकते कवरो से ध्यान भटकाना
काले शब्दों और खाकी पन्नों को तलाशना

वो किताब हूँ में

जानकारी का खजाना, सादगी से दिखाना
औरो से बेहतर ना सही, मामूली कागज पर आना
वो किताब हूँ में

शेल्फ के आखिरी किताब हूँ
पर लिखे अल्फाज़ो से लाजवाब हूँ
वो किताब हूँ में

बिना तस्वीरो का एक पुराना अखबार हूँ में
पर संजीदा कहानियो का तालाब हूँ में
वो किताब हूँ में

वक़्त ने धुल जमाई हो बेशक पन्नों पर
ज़हन पर पढ़ी धुल का ज़वाब हूँ में
वो किताब हूँ में

दिल से बेशक लगाया ना हो तूने मुझे
दिमाग से निकले हर अंदाज का भाग हूँ में
वो किताब हूँ में

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कड़वे शब्द बोलता हूँ