गुरुवार, 12 मार्च 2015

हर लम्हा एक नयी जंग लड़ती ज़िन्दगी

ज़िन्दगी इस कद्र तमाशा बना रही है मालूम नहीं, विचारो को व्यक्त करना भी मुश्किल हुआ जाता है।। मन की चंचलता कुछ ज्यादा हो गयी है, हम किसी भी बात को समझने की बजाये उलझते ही जाते है।। किसी दूसरे की गलतियों को अपने ज़हन और दिल में बाँध स्वयं का जीवन ही दूभर कर देते है।। जिन्हें हम सुधारना चाहते है उनको तो रति भर फर्क नहीं पड़ता और हम अँधेरे की गर्त की और बढे चले जाते है।। एक दोस्त का काफी अच्छी पंक्तिया कहता है

"मौज ले रोज ले, ना मिले खौज ले"

मगर कभी हम इतने लाचार हो जाते है खुद के बनाए नियमो व् सिंद्धातो को भी अनसुना कर देते है।। ये सब क्रोध की देन है।। मुझे कभी किसी दुःख से समस्या नहीं।। पर ये क्रोध जो तनाव देता है वो दुःख से भी भारी होता है।। दुःख फिर भी स्वभाव शांत रखता है चित को शांत बनाये रखता है पर क्रोध की अग्नि जिया को जलाती रहती है और हम इस अग्नि में तड़पते रहते है।। जो भी हमारी अच्छी भावनाए और सोच होती है वो भी क्रोध रूपी अग्नि में स्वाहा हो जाता है।।
में कभी भी किसी मंदिर, गुरद्वारे या पीर आदि के पास गया तो में केवल सदबुद्धि मांगता था क्योंकि मेरा मानना है कि अगर हमारी बुद्धि सही रखे तो जीवन में सब ना मिले सही, सब्र तो बना ही रहता है।। में कभी नहीं चाहता मेरी वजह से किसी को भी कोई तनाव मिले बेशक वो सबक या सीख हो। किसी को भी सबक या सीख के रूप में तनाव देना एक तरह का अत्याचार है।। इंसान के अंदर ममत्व या प्रेम इतना होना चाहिए की वो अपने सदगुणों से सबका दिल जीत ले।। डर या ताक़त से मिली जीत केवल कुछ समय की होती है जब तक कोई अधिक ताक़तवर या बड़ा डर ना आये।। जबकि प्रेम से मिली जीत ऐसी होती है उम्र भर के लिए आप के मस्तिष्क और दिल में घर कर जाती है।
आज हमारी परियोजना अधिकारी ने अच्छी बात बोली, कि हम कार्य ख़ुशी ख़ुशी के माहौल से करते है मुझे मालूम था उनकी बात सच नहीं थी पर सीख सही थी।। कार्य का माहौल अगर खुशनुमा होगा तो परिणाम बेहतर भी होंगे तथा मानसिक तनाव भी नहीं होता।।

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मेरी हर तमन्ना आरजू बेहतर इंसान बनने और बनाने की है
डर के सताए, डर जो बनाए दोनों को मानवता का धर्म सिखाए।।

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