ज़िन्दगी छूट गयी कही
दस्तावेजो को बनाने में
भूल गया हूँ शायद
ये शाम सुहानी
वो बरसाती पानी
बुजर्गो के किस्से कहानी
मिटटी में सन कर जाना
कुम्हार के चक्के को घुमाना
लुक्का छुपी में घंटो छुप जाना
बंद कमरो में मकड़ी का ताना बाना
धूल से सन्ने किताबो को ढूंढ कर लाना
कहीं से कमीज़ का उधेड़ जाना
मास्टर के नामो की खिल्ली उड़ाना
नयी डाल पर, पंछी का चहचाना
मक्के के खेत से कोवे को उड़ाना
कच्ची अम्बिया तोड़ कर खाना
दूकान से इमली का टार मंगाना
बुरी नजर वाले को देख
सात बार थूक कर आना
डोंगे वाले बाबा को राम राम
कहकर वो रोज का चिढ़ाना
मंदिर की सीढ़ियों पर चप्पल बदल जाना
वो मौजो से बड़ी जोर की बदबू आना
सुबह उठते ही चिल्लाना
स्कूल में बिजली ना होने के बहाने बनाना
झूठ कह कर मास्टर जी को धीरे से मुस्काना
बोर्ड की परीक्षा में दूर कहीं साईकिल पर जाना
पंक्चर साइकिल को घसीट कर लाना
चार आना और आठ आना का हिसाब लगाना
किसी दिन शक्कर न मिलने पर रूठ जाना
छुपके से मलाई चुरा कर खाना
मेले में जाकर देर से लौट कर आना
खिलोनो की जगह, टूटी ईंट से काम चलाना
हर दिन का नया दिन और नया बहाना
कैसे भूल गया वो दिन सुहाने
ये शाम सुहानी
फिर ले आई याद पुरानी
Sochta hoon ki har pal likhoon par likhne baithta hoon to wo pal hi gujar jata hai
रविवार, 29 मार्च 2015
ये शाम सुहानी, खो गया पुरानी यादों में
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