रब्ब को पहले मालूम था शायद
जो इस कदर बरसा की मेरा सारा दर्द
बूँद बूँद बन बह गया
बस एक तनाव ही रह गया
जितना भी बरसा हो चाहे
मगर मेरे अंदर फिर भी
कुछ तो तन्हा सा रह गया
वो तो मेरा दिल है पत्थर जो
इतना कुछ सह गया
वरना इस आंसुओ के सैलाब में
अच्छे से अच्छा भी बह गया
मेरा दिल भी बड़ी मासूमियत से
कुछ तो आज कह गया
मेरा दिल प्यासा था बरसो से
जो आज भी प्यासा ही रह गया
रब्ब तू क्यों मेरे दर्द पर बरस पड़ा
में कौन सा तेरे दर पर हुआ था खड़ा
हाथ मेरे अगर जुड़ गए होते
दुःख फिर भी सहा जाता है मुझ से
तनाव तो पल पल खाता है मुझ को
विश्वास में एक दोस्त के मारा गया
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