मंगलवार, 3 मार्च 2015

रब्ब जानता था मेरा दर्द

रब्ब को पहले मालूम था शायद
जो इस कदर बरसा की मेरा सारा दर्द
बूँद बूँद बन बह गया
बस एक तनाव ही रह गया

जितना भी बरसा हो चाहे
मगर मेरे अंदर फिर भी
कुछ तो तन्हा सा रह गया

वो तो मेरा दिल है पत्थर जो
इतना कुछ सह गया
वरना इस आंसुओ के सैलाब में
अच्छे से अच्छा भी बह गया

मेरा दिल भी बड़ी मासूमियत से
कुछ तो आज कह गया
मेरा दिल प्यासा था बरसो से
जो आज भी प्यासा ही रह गया

रब्ब तू क्यों मेरे दर्द पर बरस पड़ा
में कौन सा तेरे दर पर हुआ था खड़ा
हाथ मेरे अगर जुड़ गए होते

दुःख फिर भी सहा जाता है मुझ से
तनाव तो पल पल खाता है मुझ को

विश्वास में एक दोस्त के मारा गया

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