इंसान हूँ इंसान पर विश्वास करता हूँ
इसी ख्याल से हर बार में ही मरता हूँ
अब तो किसी के संग चलने से डरता हूँ
इतना लोग मीठा बतियाते है
जैसे तुम को साथी कोई बिछड़ा दिखाते है
और एक दिन , सभी मिठाइयो का मोल चूका जाते है
सुना है बहुत मीठे ही अवसर पाते है
ऐसे दोस्त वो बात साबित कर दिखाते है
अपनों को रुला खुद के सपने सजाते है
मीठे लोगो की महफ़िलो में अक्सर
हमारे अवगुणों के ठहाके लगते है
इंसान होकर भी इंसान के भोग में सजते है
दो चार गुर हमे भी सिखला दो इस अवसरवादी समाज के
हमे अपने कल की फ़िक्र नहीं जब परेशाँ हो अपने आज से
रंग दोस्ती में दुश्मनी के दिखा पूछते है दिख रहे हो नाराज से
ज़िन्दगी में दोस्ती को क़दम बढ़ाये है जब से
तब से हर रहगुज़र एक दर्द दे जाती है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें