सोमवार, 23 मार्च 2015

ज़हर है जहन तेरा॥

फितूर जो पनपा तेरे जहन
वो कोई अमृत है कि जहर

किसी मासूम के दिल को कहर
तेरे लिए बस ख़ुशी का एक पहर

ज़िन्दगी लूटी जिसकी तेरे मजाक से
तेरी क्रोध की नींद न टूटी
उसकी दर्द भरी आवाज से

बदले की आग, जलाकर राख करती है
माचिस जो जलाती है
उसकी तिल्ली भी खाक करती है

मोहब्बत से भर लो, ज़िन्दगी के दिन है दो या चार
नफरत से भरा जो दिल, दुसरो की करता जिंद बेकार
खुद के जीवन में भी भर देता है सुलगते अंगार

इल्तजा खारिज कर दी तूने मेरी दोस्ती की
वादा है मुझ सा दोस्त, जीवन भर ना पायेगा
खुद के दामन को जलाकर जो
तेरे दामन की खुशिया लौटाएगा

होंठो से उफ़ ना करता है वो बेशक
दुआओ से सिर्फ तेरा ही अच्छा चाहेगा
तेरी कड़वी सुन, खुद का दिल तिलमिला हो
पर तेरे जीवन में मिठास वो भर लाएगा

क्यों अपने जहन को इस कदर चलाता है
बागीचों के रास्ते पर भी, जहर बटोर लाता है
जहाँ होती है इश्क़ की खुशबू
तू नफरत के बीज बोए जाता है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कड़वे शब्द बोलता हूँ