शनिवार, 7 मार्च 2015

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

पहली पंक्ति में कहता हूँ आलोचना या तीखे शब्द हो सकते है जिसमें धैर्य की कमी हो वो व्यक्ति इस लेख से दूर रहे।।

आज समाज का वो हर तबका जो पिछड़ गया था उसे आरक्षण/महत्ता देने की बात होती है।। क्या आप लोग सही कर रहे है।।

जरा सोचिये घर में दो बच्चे होते है बड़े बच्चे को अक्सर कहा जाता है आप से छोटे है आप तो समझदार हो ।। छोटो से जिद्द नहीं करते।। इस व्यवहार से वो अक्सर अपने को ठगा महसूस करता है।। इस परिणाम अक्सर घर के  बड़े बच्चे का स्वभाव कठोर मिलेगा।।

दूसरा उदाहरण
जब बचपन में हम स्कूल में पड़ते है हमे लड़को के स्कूल में डाल दिया जाता है वो समय जब आप के कोरे मन पर समाज की तस्वीर छपनी होती है उस वक़्त समाज का अहम् हिस्सा लड़की/औरत के व्यवहार/समस्याओ से आप अन्जान होकर बड़े होते है फिर आप स्वाभाविक अपने लड़को सा व्यवहार ही लड़कियो से करते हो तो आप को  लड़कियों से बात न करने आदि के दोषारोपण से मढ़ दिया जाता है।। वो कुंठित मन से भर उठता है।। यहाँ पर दोष समाज का होता है और वो उसके लिए दोषी कहलाता है।। मानवता तब बढ़ेगी जब बचपन से बिना कोई भेदभाव हम रहते है धीरे एक दूसरे की कमी , जरुरत और भावनाओ का सम्मान करना सीखते है।।

यहाँ पर महिला दिवस की शुभकामना देने वालो से में कहना चाहूँगा।। ऐसा वहां जाकर कीजिये जहाँ अब तक शिक्षा का नामोनिशान नहीं जहाँ आदमी औरत को और औरत आदमी को कभी ना देखा हो ऐसे प्राणी की दृष्टि से देखते है।। किसी अच्छे शहरी विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे अच्छे से जान चुके होते है महिलाओ का सम्मान कैसे करते है।। जरुरत है शिक्षा के आभाव से ग्रस्त उन इलाको के लोगो को जो आज भी धर्म के नाम पर 10 वी सदी के आडम्बरों का ढिंढोरा पिट कर मानवता को ही बाँटने में लगे हुए है।।

जय मानवता।। मानवता परमो धर्म।।

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