शनिवार, 28 मार्च 2015

इन्तजार के पल

इन्तजार इस कदर खाता है
हर पल कुछ घटता चला जाता है

लम्हों का हिसाब लगता नहीं
हर लम्हा अरसा बन जाता है

कदमो से लगाता है वक़्त हमे
घड़िया दर घडी रुलाता है वक़्त हमे

दो पल सकूँ आ जाता
कोई अपना घर साथ निभाता
यहाँ तो खुद का भी शरीर
देख घडी हो जाता है गंभीर

आज मालूम हुआ की
अन्जान लोगो से भरा है संसार
ना उम्र का तकाजा
ना वक़्त का विचार

कैसे इन अन्जान लोगो से में बात करुँ
हर किसी के चेहरे से जाने क्यों डरु

राह ए मंजिल हो तो कट भी जाए
एक बिंदु पर कहीं सीना फट ना जाए

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कड़वे शब्द बोलता हूँ