इन्तजार इस कदर खाता है
हर पल कुछ घटता चला जाता है
लम्हों का हिसाब लगता नहीं
हर लम्हा अरसा बन जाता है
कदमो से लगाता है वक़्त हमे
घड़िया दर घडी रुलाता है वक़्त हमे
दो पल सकूँ आ जाता
कोई अपना घर साथ निभाता
यहाँ तो खुद का भी शरीर
देख घडी हो जाता है गंभीर
आज मालूम हुआ की
अन्जान लोगो से भरा है संसार
ना उम्र का तकाजा
ना वक़्त का विचार
कैसे इन अन्जान लोगो से में बात करुँ
हर किसी के चेहरे से जाने क्यों डरु
राह ए मंजिल हो तो कट भी जाए
एक बिंदु पर कहीं सीना फट ना जाए
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