मंगलवार, 30 जून 2015

कुछ यूँ बदला वक़्त की आज फिर अकेला हो गया

कुछ यूँ बदला वक़्त की आज फिर अकेला हो गया

भीड़ तो है बहुत, कहने को कोई अपना नहीं
ज़िन्दगी ऐसा कुछ मेला हो गया
कुछ यूँ बदला वक़्त की आज फिर अकेला हो गया

चंद दोस्त बनाये थे इस जहाँ में
हर कोई मतलब निकलते ही चल दिया
ठगा सा रह गया दिल, आन पड़ी हो मुश्किल
कुछ यूँ बदला वक़्त की आज फिर अकेला हो गया

भरोसे के काबिल ना रही हो जब दुनिया
भला इंसान भी बुरा नजर आता है
कोई नया हाथ भी बढ़ा दे अगर, ज़ख्म रो पड़ते है
कुछ यूँ बदला वक़्त की आज फिर अकेला हो गया

दिल फिर भी दुआ करता है कि वो दोस्त कामयाब हो
जो मुझे छोड़ कर चले गए
कुछ यूँ बदला वक़्त की आज फिर अकेला हो गया

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अकेला हूँ बेशक, ज़ख्म अब भी साथ है
कुछ रोने के काम आते है, कुछ कुरेदने के

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