गुरुवार, 25 जून 2015

भड़ास

तिल तिल मरता हूँ जाने कौन से जख्म से जलता हूँ
आह् भी तोड़ देती है, मुश्किल में सांस भी छोड़ देती है
काँटों का ताज मिला है जब भी ज़िन्दगी को गले से है लगाया
जानत के ख़्वाब दिखा कर दिल ने, दर्द के भवसागर में है फसाया
लोगो को लगता है मुझे आदत हो गयी जल जाने की
कहाँ मालूम है उन्हें, मेरी कहानी लिखी रब्ब ने आंसुओ को पि जाने की
अब में कह सकता नहीं, तन्हा भी रह सकता नहीं
तू पूछ भी ले दर्द मेरा, दिल ऐसा है ख़ामोशी कि कह सकता नहीं

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कड़वे शब्द बोलता हूँ