तिल तिल मरता हूँ जाने कौन से जख्म से जलता हूँ
आह् भी तोड़ देती है, मुश्किल में सांस भी छोड़ देती है
काँटों का ताज मिला है जब भी ज़िन्दगी को गले से है लगाया
जानत के ख़्वाब दिखा कर दिल ने, दर्द के भवसागर में है फसाया
लोगो को लगता है मुझे आदत हो गयी जल जाने की
कहाँ मालूम है उन्हें, मेरी कहानी लिखी रब्ब ने आंसुओ को पि जाने की
अब में कह सकता नहीं, तन्हा भी रह सकता नहीं
तू पूछ भी ले दर्द मेरा, दिल ऐसा है ख़ामोशी कि कह सकता नहीं
Sochta hoon ki har pal likhoon par likhne baithta hoon to wo pal hi gujar jata hai
गुरुवार, 25 जून 2015
भड़ास
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