बुधवार, 3 जून 2015

वक़्त जाया हो गया तन्हाई में

क्यों टूट जाता हूँ अक्सर
विपरीत दिशा की हवाओ से
मेरी भी ज़िन्दगी महका दो फिजाओ से

यूँ जिद्द करता है दिल, महफ़िलो की
अब तन्हाई डसने को आती है
रोज वो आने कह जब लौट जाता है

मासूम दिल करवटें लेकर आहें भरता है
पागल है जो कुछ भी कहने से डरता है
उसकी सिसकियां देख ये घबराता है

गर्मी की धुप सा, मेरा बदन वो जलाता है
लावा बन बहता है सीने में
भूकंप सा पैदा करता है जीने में

कोई कसर हो गर मेरे चाहने में
अनाड़ी समझ, नजरअंदाज करना

आँखें झूठ नहीं कहती सुना है बहुत
वक़्त मिले तो निगाहो से इनको पढ़ना

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कड़वे शब्द बोलता हूँ