बुधवार, 17 जून 2015

आज उनकी तक़लीफ़ बन गया हूँ में

आज उनकी तक़लीफ़ बन गया हूँ में
रह रह उनको सताता हूँ
वो बरस पड़ता है मेरी अनकही बातों पर

मायूसी भरा चेहरा मुझे भी रुलाता है
आज उनकी तक़लीफ़ बन गया हूँ में

सुर्ख आँखों से मुझे निहारता है वो
उम्मीद भरी नजरों से सीने में उतर जाता है
कुछ ना हासिल होने पर मायूसी से लौट आता है
आज उनकी तक़लीफ़ बन गया हूँ में

बदतर हो गयी मेरी वो बातें भी उनको
जिनसे कभी मुरझाया चेहरा चहक जाता था
बरसो से अडिग इमान बहक जाया करता था
आज उनकी तक़लीफ़ बन गया हूँ में

चंद साँसे है या तो यादों में ही गुजार लो
नहीं तो कुछ लम्हें हमारे
कुछ अपने जीवन पर वार दो
आज यहीं इस इन्तजार को मार दो
आज उनकी तक़लीफ़ बन गया हूँ में

#
जीना हो गर तुम्हें, गैरो पर मरना छोड़ दें
अपने लिए जियो वो पल बेशक पल भर के हो

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कड़वे शब्द बोलता हूँ