शुक्रवार, 12 जून 2015

रंगो से भरी ट्रेन

भारत के विविधताओं और रंगो के बारे किताबो में तो पढ़ते है। पर ट्रेन में ये सब नजर आते है। हर कोई अलग अलग धर्म समुदाय रंग संस्कृति का भेद रखने वाला। ज्यादातर के मन में एक दूसरे को जानने की उत्सुकता नजर आती है। ट्रेन की गतिविधियों के विरोध में सब का एक स्वर में बोलना। विभिन्नताओं के होते एकजुट इंसान जब होता है तब सब को एक ही दर्द ने मारा हो । कुछ बुद्धिजीवी भी है जो जीवन की जटिलताओं पर बातें करना पसंद करते है। यकीन मानिए थोड़ा सा भी संकोच ना करते हुए बात कीजिये आप को भिन्नता नजर ही नहीं आएगी। जाते हुए हमारे पास स्लीपर में टिकट ना होने के बावजूद बड़े प्रेम भाव से कोलकाता तक का सफर अपने टिकट से करवाया। हमे कुछ समय अच्छी नींद मिले इसके लिए वो ट्रेन में टहलने निकल जाते थे। काश घर से निकल व्यक्ति का जैसा व्यवहार बाहर लोगो के प्रति होता है वही व्यवहार वो अपने क्षेत्र में क्यों नहीं रख पाते। अभी ट्रेन जाने कहाँ खड़ी है ।

समय मिला तो सोचा कुछ आप से बाँट लूँ।
अब वापिस जाते हुए ac टिकट हुयी तो बहार का मौसम वैसे सुहावना हो गयी।

जारी है ......

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