हर तरफ नजर आते है अपने यहाँ
मगर कोई अहसास करा जाता पराये होने का
मासूम दिल को भी बहाना हो जाता रोने का
क्या बिगाड़ा था इस जग का
जो ये हाल किया मेरे खिलोने का
बहुत से देखे पराये अपनों के मुखोटों में
अब तो अपने भी पराये नजर आने लगे है
मुखोटे भी अपनी हंसी लगाने लगे है
जग भाया ना मझे रब्ब तेरा की मुझे जग का होना नहीं आया
बहुत मिला जग से ढूंढ ना सका अपना और पराया
मुखोटों के बीच रहकर खुद का चेहरा भी गंवाया
रोज एक मुखोटा नया नजर आता है
पुराने को झूठा जता खुद को नया बताता है
अगली रोज वो भी धोखेबाज़ कहलाता है
रिश्तों में भी घुल गया जहर मुखोटों का
छोटा बड़ा भाई बताते है
फिर पीठ पीछे खंजर चलाते है
चक्रव्यूह से भर गया
सादा जीवन भी संसार का
टुकड़ो में बाँट दिया है जो अब
हिस्सा ना मिला अपनों के प्यार का
कोई मेरा मुखोटा भी हटा दे
मुझे भी जग का हिस्सा बना दे
नही तो ना होने का मुखोटा ही लगा दे
खुद को ही उठाना पड़ता है, थका टुटा बदन अपना... क्योंकी जब तक साँसे चलती है, "कन्धा" कोई नही देता।
जवाब देंहटाएंapna bojh khud uthata hoon
जवाब देंहटाएंanjane bojh se ulajh jata hoon