बचपन सा खेलते आज भी बहुत है
गर हम अपने दिल और दिमाग से
कम्बखत अक्सर दिमाग जीत जाता है
बचपन के खिलोनो से रोना अच्छा था
कोई कोना नहीं ढूँढ़ते थे गम छुपाने को
कोई तो हँसता है मेरे दर्द पे
इसी सकूँ से दर्द सह लेते है
तुम्हे मजा आता है
अगले का दिल जला जाता है
तुम यूँ जो आते हो
हमे जलाते हो
और फिर जले पर नमक लगा
थोडा मुस्कराते हो
वो कहते है मुझे अब उनकी जरूरत नहीं
नहीं जानते जरूरते अक्सर पूरी होने पर खत्म हो जाती है
और वो मेरी जरूरत नहीं जूनून है दिल का सकूं है
वो कहते है तुम मौसम सा बदल गए
पहले उनको ना बदलने की परेशानी थी
वो आती है
इतराती है
बल खाती है
जुल्फ झटक
निकल जाती है
कड़वा होकर इतना पसंद आता हूँ
मीठा हुआ तो कही रूह में ना बस जाऊ
आज समस्या है मेरी
हो गया गर प्यार
कल हो जायेगी तेरी
#dp
बदल दो ये तस्वीर तुम्हारी
जिसने नींद लूटी हो हमारी
समंदर नहीं में 100 नदिया समा जाऊ
इश्क़ का प्यासा हूँ
ठंडी हवा से तृपत् हो जाऊ
उनसे परेशानी का सबब पूछते है
कैसे कहें की इश्क़ से डर लगता है
तेरे मीठेपन से परहेज है मुझे
ये मेरे कड़वेपन का एहसास दिलाता है
आज मेरे शेर का तू शिकार है
शायरी ही मेरा एक विकार है
शब्दों का मायाजाल बुनता हूँ
तुम सा नेक दिल निशाना चुनता हूँ
रब्ब क्यों दिल देता है
देता है तो फिर क्यों
दिल के बदले जिंद लेता है
आज लिखने को कुछ खास नहीं
मेरे शब्दों में शायद मिठास नहीं
बरसते है वो हम पर इस गुनाह से
की हम ने इश्क़ में चोट खायी है
बेखबर है कि बेरहम
दर्द से मेरे जो अन्जान है
_
तेरी बातों से दर्द की आहट होती है
लगता है तूम तन्हा ही बहुत रोते हो
ख़ुशी कहाँ रहते हो तुम
बरस बीत गए
तुम्हे देखा नहीं
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