मेरे कुछ दोस्त अक़्सर मुझे मेरे लेख के प्रंशसक होने की दुहाई देते है, और ये उनका झूठ उस वक़्त पकड़ा जाता है जब वो मुझसे सवाल ऐसे कर जाते है जिनका जवाब में ब्लॉग में दे चुका होता हूँ, मुझे उनके जीवन से कोई प्रभाव नही वो चोरी करें, किसी को धोखा दें, किसी से मतलबी रिशतें रखे इत्यादि, फर्क तब पड़ता जब वो मुझ से सम्बंधित विषयों पर असहजता भरे जवाब देते है या बहाने प्रवृति के जवाब देते है।
एक नए तो आज सवाल किया क्या चाहिए? इतनी हंसी आई मन में कि पूछिये मत क्योंकि आजतक मेने जब भी कोई इच्छा इस दोस्त को जताई तो इसके हैरतअंगेज बहाने तैयार रहते थे, इसने मुझे हमेशा महसूस करवाया कि मैं उसकी प्राथमिकताओं में कभी था ही नहीं।
और मैं तो सभी दोस्तों से कहता हूँ कि केवल ज़िन्दगी और मौत के अतिरिक्त कोई कार्य जरूरी नहीं होता, इनसे अलग आपको कोई बहाना बनाता है यो समझिए आप उसकी प्राथमिकता नही थे। मेरे लिए ऐसा बहुत कम रहा मेरे दोस्तों ने मुझे कोई बात कही हो और मैने अनसुनी कर दी या उसपर अमल न किया हो। इसलिए शायद में उम्मीद भी वैसी रखता हूँ जो कभी पूर्ण नही होता और मन को ठेस पहुँचती है।
कभी कभी तो सबके रवैये एक जैसे देखने पर लगता है कि मैं ही गलत हूँ बाकी सब ठीक, ये दोस्ती, निस्वार्थ त्याग इत्यादि किताबों में पढ़ाए जाने वाले शब्दकोश है। जिनका जीवन से कोई संबंध नहीं है। खैर छोड़िए हम तो खामोशी से देखने के सिवा कुछ नही कर सकते, उनको करने दीजिए उनका कर्म, मैं तो विकास की असली प्रवृति अकेले शांत रहने की, दोबारा ढल से गया हूँ, किसी से भी ज्यादा मेल भाव अब कर ही नही पाता। बस एक अलग दुनियाँ ही अच्छी है।
Sochta hoon ki har pal likhoon par likhne baithta hoon to wo pal hi gujar jata hai
सोमवार, 5 नवंबर 2018
दिखावे की मानसिकता या भ्रमित संसार
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