एहसास हुआ
भ्रम था जो
आज टूट गया
जब उसका साथ
मुझ से छूट गया
लगता था कोई
मेरी खुशिया
लूट गया
खुश हो गया
वो अपनी दुनिया में
इतना बहुत है
हक़ जताना मुझे
कभी आया नहीं
इसलिए कोई भी रिश्ता
निभाया नहीं
वक़्त ही कुछ ऐसा है
हक़ जताये बिना
कुछ मिलता नहीं
सुखी जमीं पर
फूल खिलता नहीं
Sochta hoon ki har pal likhoon par likhne baithta hoon to wo pal hi gujar jata hai
बुधवार, 24 फ़रवरी 2016
खुश है वो अपनी दुनिया में
मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016
भटकती ज़िन्दगी
रोजाना सुनने में आता है टीवी पर आज ये हो गया वो हो गया जानते हो ये सब हमेशा से होता आया है। पर प्रसार के माध्यमो की कमी से लोगो को पता नहीं चलता था तो मुद्दे इतने बड़े लेवल पर गंभीर नहीं होते थे।
और इस का फायदा चंद रसूखदार लोग उठाते है। सामान्य व्यक्ति अपनी उलझनों के साथ और उलझन बढ़ा लेता है।
दिल्ली में माननीय केजरीवाल जी ने क्या किया इसका ताजा उदहारण है। उसने सभी कांग्रेस और बीजेपी व् अन्य सभी पार्टियो को चोर बताया। सत्ता पर काबिज होते ही लालू जैसे मशहूर चारा घोटाले के साथ खड़े नजर आए। मीडिया ने सवाल उठाये तो अन्य राजनेताओ की तरह सफाई देते नजर आये। आज के समय सभी नेताओ में वो सत्ता के सबसे लोभी व्यक्ति है। पैसे के लोभ की सीमा हो सकती है पर सत्ता के लोभ की नहीं होती। हार्दिक पटेल भी इस कड़ी का मोहरा है उसने भी पाटीदार आंदोलन को अपनी राजनीती में चमकने की बैसाखी बना लिया। अण्णा जैसे ईमानदार व्यक्तियो की भी छवि इन लोगो की वजह से धूमिल हुई।
इन लोगो ने साबित कर दिया अगर आप झूठ को भी चिल्लाकर अच्छे से पेश करो तो वो सच हो जाता है। भ्रष्ठ जो है वो कल भी थे और आज भी है। और सभी भ्रष्ठ लोगो को आप गोली भी नहीं मार सकते। आवश्यकता है नियमो में सुधार करने की। मानसिकता बदलने की। आज भी हर व्यक्ति अपना काम निकलवाने के लिए चंद घड़ी लाइन में ना खड़ा होना पड़े तो पहले भाई भतीजावाद का सहारा ढूंढेगा। नहीं मिला तो पैसे की धौंस से करवाना चाहेगा। फिर आप कैसे नेताओ और अफसरों पर ऊँगली उठा सकते हो जबकि शैतान आप के अंदर है। वोट के समय भी उम्मीद्वार को ना देखकर आप प्रलोभनों से वोट देते हो।
आंदोलन तब होता है जब आप पर कोई तानाशाही कर रहा हो । आप द्वारा चुनी गई सरकार के आगे आंदोलन का मतलब है पहले खुद को शीशे के सामने खड़ा करें।
जय हिन्द
गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016
आखिर तू है कहीं
ख़ामोश रहने लगा है
शायद थोड़ा उदास भी
मुझे से बातें करने से कतराता है
हर लम्हा वो नजरें जो चुराता है
कभी मिल भी जाए गर नजर
एक झूठी मुस्कान बिखेर जाता है
मेरे सीने को इतने प्रहार कर जाता है
फिर भी एक कोने में अलख जगाता है
एक ख़ुशी आखिर तू है कहीं
दिल को सकूँ दिलाती है
तेरी मौजूदगी ही तो है
मेरी नब्ज़ चलती जाती है
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बेशक़ मेरी राहों से, बंद हुआ तेरा आना
मगर आज भी पायल की खनक का हूँ दीवाना
कलम ...........बुनती अरमान
लिख देती
हर पन्ने पर खुशिया
कोरे मन को
शब्दों से बुन देती
मासूमियत भरे
अल्फ़ाज़ उसके
दिलों पे छा जाए
दो अनजान का
रिश्ता बनाए
एहसास सुनाए
दास्ताँ का लिफाफा
जिसने भी पढ़ा है
उसने खूब जाना और माना
दुआ है मेरी
कलम बुनती अरमान
यूँ ही चलती रहे
कोरी है जो जिंदगियां
इस कलम से खिलती रहे
मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016
ज़िन्दगी
मिल गया मुकद्दर
कि ज़िन्दगी उड़ने लगी
काँटों सी झूलती
मखमल पर चलने लगी
बरसो से तपती हुई अँखिया
आज झील सा शांत हो गई
रोज रोज की तंग थी खुशिया
आज खुलकर मेरी ही हो गई
सदियो से कटती ना थी जो रतिया
आज खुले आँगन में ही सो गई
लगता तो है आखिर
मेरी ज़िन्दगी मेरी हो गई
सोमवार, 1 फ़रवरी 2016
क्यों बेचैन है वो
क्यों बेचैन है वो
जब साथ था तब भी
दूर हुआ तो अब भी
क्यों बेचैन है वो
पहले मेरे शब्दों से परेशां
अब मेरी ख़ामोशी से हैरान
क्यों बैचैन है वो
मैं बेशक टूटा हूँ
पर उस से छूटा हूँ
फिर क्यों बैचैन है वो
दुनिया भी छोड़ सकता नहीं
बहुतो की उम्मीदें तोड़ सकता नहीं
फिर क्यों बैचैन है वो
अपने आसमान की छाँव में
बेहतर रिश्तों की पनाह में
फिर क्यों बैचैन है वो
फिर क्यों बैचैन है वो