गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

आखिर तू है कहीं

ख़ामोश रहने लगा है
शायद थोड़ा उदास भी

मुझे से बातें करने से कतराता है
हर लम्हा वो नजरें जो चुराता है

कभी मिल भी जाए गर नजर
एक झूठी मुस्कान बिखेर जाता है

मेरे सीने को इतने प्रहार कर जाता है
फिर भी एक कोने में अलख जगाता है

एक ख़ुशी आखिर तू है कहीं
दिल को सकूँ दिलाती है
तेरी मौजूदगी ही तो है
मेरी नब्ज़ चलती जाती है

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बेशक़ मेरी राहों से, बंद हुआ तेरा आना
मगर आज भी पायल की खनक का हूँ दीवाना

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कड़वे शब्द बोलता हूँ