क्यों बेचैन है वो
जब साथ था तब भी
दूर हुआ तो अब भी
क्यों बेचैन है वो
पहले मेरे शब्दों से परेशां
अब मेरी ख़ामोशी से हैरान
क्यों बैचैन है वो
मैं बेशक टूटा हूँ
पर उस से छूटा हूँ
फिर क्यों बैचैन है वो
दुनिया भी छोड़ सकता नहीं
बहुतो की उम्मीदें तोड़ सकता नहीं
फिर क्यों बैचैन है वो
अपने आसमान की छाँव में
बेहतर रिश्तों की पनाह में
फिर क्यों बैचैन है वो
फिर क्यों बैचैन है वो
Sochta hoon ki har pal likhoon par likhne baithta hoon to wo pal hi gujar jata hai
सोमवार, 1 फ़रवरी 2016
क्यों बेचैन है वो
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