शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

ख़ामोशी रात की

प़ल पल डसती है तन्हाई
खुद से होती है रुसवाई
कुछ इस कदर
ख़ामोशी रात की

यादों के झरोखे
तस्वीर बन घूमते है
मेरे लब फिर उसके शब्द चुमते है
कुछ इस कदर
ख़ामोशी रात की

प्यास बन वो जहन में उतर जाता है
याद आने पर वो और दूर चला जाता है
कुछ इस कदर
ख़ामोशी रात की

ना फ़िक्र उसे
ना कद्र उसे
मेरी कही हर बात की
कुछ इस कदर
ख़ामोशी रात की

#मेरी रातों को खामोश करने वाले
तेरे उजालों में लहू मेरे जज्बात का है

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कड़वे शब्द बोलता हूँ