गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

कुछ लम्हें तो उधार दे

मेरी जिंदगी मेरे नसीब पर वार दे
पर कुछ लम्हे उधार दे

मौसम बदलते है रिश्ते बदलते है और फिजा बदल जाती है
पर मेरा नसीब बदनसीबी में दम तोड़ जाता है
कोई जिस्म का टुकडा वार दे
पर कुछ लम्हे उधार दे

बेबस इतना किया चिल्लाया तो तनहा था
खामोश रहा था तो ठहाके लगा मजाक बना दिया
मेरे सांस ही जिस्म से उखाड़ दे
पर कुछ लम्हे उधार दें

सोचने को दिमाग नहीं करने को हजार काम है
कुछ गलत किया तो जीना हराम है
मेरे सारे सपने भी वार दे
पर कुछ लम्हे उधार दे

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कड़वे शब्द बोलता हूँ