मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

लाल बहादुर शास्त्री के जीवन पर प्रकाश

लालबहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर सन्‌ 1904 ई. के दिन वाराणसी जिले के छोटे से गांव मुगलसराय में हुआ था। सामान्य शिक्षक का कार्य करने वाले पिता शारदा प्रसाद मात्र डेढ़ वर्ष की आयु में ही बालक को अनाथ करके स्वर्ग सिधार गए। माता श्रीमती रामदुलारी ने ही ज्यों-त्यों करके इनका लालन-पालन किया। बड़ी निर्धन एवं कठिन परिस्थितियों में इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण की। बाद में वाराणसी स्थित हरिशचंद्र स्कूल में प्रविष्ट हुए। सन्‌ 1921 में वाराणसी आकर जब गांधी जी ने राष्ट्र को स्वतंत्र कराने के लिए नवयुवकों का आह्वान किया, तो उनका आह्वान सुनकर मात्र सत्रह वर्षीय शास्त्री ने भरी सभा में खड़े होकर अपने को राष्ट्रहित में समर्पित करने की घोषणा की। शिक्षा छोड़ राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े और पहली बार ढाई वर्ष के लिए जेल में बंद कर दिए गए। जेल से छूटने के बाद राष्ट्रीय विचारधारा वाले छात्रों के लिए स्थापित काशी विद्यापीठ में प्रवेश लेकर फिर पढ़ने लगे। वहां पर इन्हें डॉ. भगवानदास, आचार्य कृपलानी, श्रीप्रकाश और डॉ. संपूर्णानंद जैसे शिक्षक मिले। जिनके निकट रहकर इन्होंने स्वतंत्र राजनीति की शिक्षा तो प्राप्त की ही, शास्त्री की उपाधि या डिग्री भी पाई और मात्र लाल बहादुर से लालबहादुर शास्त्री कहलाने लगे।शिक्षा समाप्त कर शास्त्री जी लोक सेवक संघ के सदस्य बनकर जन-सेवा और राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए कार्य करने लगे। अपने कार्यों के फलस्वरूप बाद के इलाहाबाद नगर पालिका एवं इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट के क्रमशः सात और चार वर्षों तक सदस्य बने रहे। बाद में उन्हें इलाहाबाद जिला कांग्रेस का महासचिव, तदुपरांत अध्यक्ष तक मनोनीत किया गया। प्रत्येक पद का निर्वाह इन्होंने बड़ी योग्यता और लगन के साथ निःस्वार्थ भाव से कर के आम जनता और उच्च नेता वर्ग सभी का मन मोह लिया।आम साधारण व्यक्ति से भी साधारण व्यक्तित्व, एकदम साधारण परिस्थितियों और वातावरण में जन्म लेकर असाधारण एवं युगपुरुषत्व को प्राप्त कर लेना वास्तव में बड़ी ही महत्वपूर्ण बल्कि चमत्कारपूर्ण बात कही एवं स्वीकारी जा सकती है। चमत्कार करके साधारणता से असाधारणता प्राप्त कर लेने वाले व्यक्तित्व का नाम है लालबहादुर शास्त्री, जिसने नेहरू के बाद कौन जैसे प्रश्न का उचित समाधान प्रस्तुत किया। साथ ही अपने अठारह मास के शासन काल को भी अठारह सदियों जैसे लंबे समय के गर्व एवं गौरव से भर दिया

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