गत कुछ दिनों से में कार्यालय की ग्राम सचिव के समूह स्तर की बैठकों में भाग ले रहा हूँ, जिन अपेक्षाओं से मैंने इन मीटिंग में भाग लिया था उनसे विपरीत अधिकारी का आचरण देखने को मिला। मानता हूँ कि हो सकता है कि मेरी सूझबूझ का स्तर उतना न हो, लेक़िन मेरी समझ अनुसार इन बैठकों का नतीजा शून्य है, जैसे कोई खानापूर्ति के लिए कार्य किया जा रहा हो। जैसे दिखावा करने को की मेने तो अपनी जिम्मेदारी निभा दी दूसरों ने नही किया तो मेरा क्या दोष। क्या इतनी सार्थकता काफी है। केजरीवाल जैसा आचरण है ये तो? जितना हम दूसरों से कार्य की अपेक्षा रखते है अगर स्वयम को उसी तराजू में रखें तो शायद हम कुछ जान पाए। अधिकारियों के पिछले 3 वर्ष में 3 अधिकारी और 3 ही रूप दिखे। प्रथम अधिकारी तो जगजाहिर था, जैसा कहते है सब नेता चोर है पर मेरा काम करदे मुझे उससे क्या। द्वितीय अधिकारी ऐसा की जिसके लिए नौकरी एक सरकारी अध्यापक की तरह थी, जो हो रहा है ऐसे ही होगा मेरा वेतन मिल रहा है मेरा घर चल रहा है वो काफी है। और तीसरे अधिकारी की शिक्षा और दीक्षा देखकर लगा था कि ये अधिकारी तो कुछ जुनून रखता है जमीनी स्तर पर कार्य करने का, मगर आशाओं पर उस वक़्त पानी फिर गया जब मैंने उनकी अखबारों में चमकने की भूख, ग्राम विकास की पीड़ा को अनुभव करने से ज्यादा थी। मैं सहमत हूँ कि समाज स्वयम का दुश्मन बना हुआ है वो निज हित के कारण सामूहिक विषयों को दरकिनार कर देता है। लेकिन इतना आसान होता सत्य का रास्ता तो हर कोई मसीहा या फरिश्ता न होता। संसार नही बदल रहा तो मैं ही बदल गया, इस धारणा का दुष्परिणाम तब देखने को मिलेगा जब आने वाली नस्लें चैन की जिंदगी के लिए जमीन तलाशेगी और सिवा कचरे के और कुछ नही होगा, मेरा शक अधिकारी की क्षमता पर नही और न ही मैं उनकी विवेचना करने की क्षमता रखता हूँ, मैं स्वयं की पीड़ा व्यक्त कर रहा हूँ, क्योंकि इतनी शिक्षा और नयेपन का अधिकारी बहुत कम देखने को मिलेगा और जब वो ही अधिकारी नही काम करेगा तो तकलीफ़ होना जायज है, स्वयम की बात करूं तो फिर सब कहेंगे अहम हो गया, मैं अपनी निर्धारित कार्य को कभी रुकने नही देता और सही कार्य को अधिकारियों से करवा भी लेता हूँ। मुझे तक़लीफ़ इतनी सी बात देती है जब मुझे दुसरो की तुलना करके नीचा दिखाया जाता है, एक विषय पर जब आप मेरी तुलना उनसे करते है क्या अन्य विषय जिनमें मेरी दक्षता है उनकी तुलना की, नही कभी नही। क्योंकि वो विषय तो आपकी पसंद ही नही।
और कुछ बातें सीने में इसलिए दफन कर लेता हूँ क्योंकि समाज का हर बात को लेने का संदर्भ अलग होता है । जब कभी आप किसी का सम्मान करने का नाम करते हो और फिर पलट जाते हो तो क्या उसका अपमान नही हो जाता। और ऐसा एक बार नही बहुत बार हुआ, कभी रिवॉर्ड के नाम लैपटॉप की मीठी गोली, कभी स्वतंत्र दिवस पर सम्मानित करवाने के सपने, यहां इस बात से ये भी प्रश्न उठता है कि जब अधिकारी अपने क्षेत्र का कार्य सम्पन्न नही कर पाता और कर्मचारी से उसकी तय चुनोतियों से अलग कार्य की अपेक्षा रखता है और पूरा न होने पर उसे बैठकों में अपमानित करता है। हालांकि मेने अधिकारी को भी उनके उच्च अधिकारियों के समक्ष बेबस पाया है और ये ही सोचकर मैं स्वयम को तसल्ली देकर अपने कार्य को पूरी मेहनत से पूर्ण करने की कोशिश करता हूँ।
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आज बाहुबली 2 मूवी देखी उसमें कुछ सार समाज की समझ बतलाता है जब आपके मन कपट नही होता तो कपटी व्यक्ति आप का शोषण इस तरह से करेगा आप सोच नही सकते यही जीवन में घटित होता है सदा, जहां आप सहकर्मियों पर भरोसा करते है वहीं सहकर्मी निज हित के लिए आप को मूर्ख साबित करते है, जबकि वो ये भूल जाते है कि जो व्यक्ति उनके स्नेह में एक बार मूर्ख बनकर उन्हें फायदा देता है जीवन भर के दोस्ती में कितना अनमोल होता। और थोड़े लालच में वो बड़ा नुकसान कर देते है। वो मूर्ख मित्र तो मन से प्रसन्न जीवन आनंदपूर्वक जी लेगा क्योंकि उसके मन मैल नही। छल करने वाला सदा छल की दलदल में ही रहता है डर के साये में सदा।
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