बचपन की सीख
कि ज़िन्दगी उसूलों पे चलती है
मेने भी कुछ बनाये थे
पर जब किताबों से बाहर
व्यावहारिक दुनिया आये थे
उसूलों ने कुछ यूँ थपेड़े खाये थे
वो ही लूटेरे निकलेे जिसने कायदे बनाये थे
खुद की सीख के चीथड़े करते हुए ना शरमाये
मेरे उसूल झूठी शान की भेंट चढ़ाये थे
अब कैसे बदलता खुद को
बचपन में घोट कर पिलाये थे
उनकी आदत थी बदल जाने की
हमने तो एक जीवन के उसूल बनाये थे
ज़मीर से जुड़ा था मेरा हर उसूल
फिर समाज के कुछ कायदे कबूल
ये ही थी जीवन की सबसे बड़ी भूल
हर किसी ने उसूलों के कतरे बहाए है
किसी ने लहू पिया किसी ने टुकड़े चबाये है
फिर क्यों मेने उसूलो के ख़ातिर
ज़िन्दगी के हसीन पल गंवाए है
उसूलो की भेंट मैने सुखद पल खो दिए
दुनिया से लड़ते लड़ते होंसले भी रो दिए
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