शुक्रवार, 15 अप्रैल 2016

बला का खूबसूरत।।

बला का खूबसूरत है वो
मुझे तो नाकाफी था
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शिकायत है उनको रब्ब ना समझा
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है चीज कुछ ऐसी ज़िन्दगी
जिसको माना हो भगवान
जागा है उसका अहम का शैतान
न बना भगवान, ना रह पाया इंसान

बला का खूबसूरत है वो
मगर दिल खूबसूरत रख ना पाया
रेत सा फिसलती है रोज ज़िन्दगी
कोई रिश्ता ना उससे सम्भल पाया

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अहम को जो मिटटी में मिलाया होता
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बला का खूबसूरत है वो
खूबसूरत दिलों का साथ पाया होता
पलकों पर ना सही बेशक़
दिल में बिठाया होता
ज़िन्दगी का सलीका सिखाया होता

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वजूद है कुछ ऐसा मेरा
दिल में रखता हूँ अच्छाई
अच्छो की तमन्ना है दिल की
बस ये ही मुझ में एक बुराई

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