तुम हाँ तुम
प्रेरणा बनी थी मेरे कलम की
बड़े फ़रेबी अंदाज से, मुझे समझाया था
खुद के दासी होने पर मुझे मालिक बताया था
तुम हाँ तुम
जिसने मुझे हँसना सिखाया था
एक राह दिखाई थी, कि दुनिया बड़ी हसीन है
ऐसा उड़ा था मैं, जैसे तू ही मेरा मोहिसिन है
तुम हाँ तुम
जिसके खातिर उसूलों को छोड़ दिया
उतर गए मेरे कोरे मन में, जैसा चाहा लिख डाला
मोहब्बत होने लगी थी ज़िन्दगी से, तो बदल गया
तुम हाँ तुम
जिसने मेरी शराफ़त को निचोड़ दिया
मासूमियत भरी मेरी सीरत को, फ़रेब से रूबरू कर दिया
तन्हाई में बहने वाली तन्हा रगों को, जुदाई के दर्द से भर दिया
तुम हाँ तुम
जिसने मुझे तन्हा से रुसवा कर दिया
शिकवा करते है मुझ पर लिखते नहीं वो
जिनकी तारीफ़ से, मेरी कलम ही रूठ गई
तुम हाँ तुम
जिसकी वजह से जीने की वजह ही छूट गई
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