मंगलवार, 17 मई 2016

शब्दों के आंसू

पत्थर से भी वजनदार हो गया
उसके जीवन में मेरा किरदार

अब मेरी हर कहानी उसके लिए
सिर्फ एक लफ़्ज भर हो गई है

कुछ ओह आह की दाद दिया करता है
मेरी हर बात पे इरशाद किया करता है

मायने नहीं उसको मेरी कविताओं के
एक भूली बिसरी याद समझ भुला देता है

मेरी बातें दिल से ना लगे, इसलिए रो देता है
जितनी भी आरजू करूँ, आंसुओ से धो देता है

जब हूँ ही नहीं, उसके जीवन का किरदार
फिर क्यों तानों से जख़्म दिया करता है

जब भी कोशिश करता हूँ आगे बढ़ने की
फिर उस दोराहे पर, ला दिया करता है

कुछ दर्द बांटने की थी जिस से ख्वाहिश
वो ही आंसुओ में डुबो दिया करता है

कमजोर दिल/जिगर भी क्या चीज है
समझने को तो सबके लिए अजीज है

पर ये भी इस समाज की ही तमीज़ है
व्यवहारिक दुनिया में हम सिर्फ नाचीज है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कड़वे शब्द बोलता हूँ