चारों तऱफ बात तो सब करते है महिलाओं के सशक्तिकरण की, पर करते क्या है? सुरक्षा के नाम पर चंद दीवारें और महिलाओं के लिए खड़ी कर देते है। तुम्हें ये नहीं करना, वो नहीं करना इत्यादि बन्धनों में बांध दिया जाता है।
महिला सशक्तिकरण? महिलाओं को इतना सक्षम बनाना कि उनकी निर्भरता चाहे वो आर्थिक हो या सामाजिक किसी अन्य व्यक्ति विशेष पर न निर्भर हो। उसके आत्मविश्वास को इतना सृदृढ़ बनाना कि उसे किसी भी कार्य को करने में अक्षमता का अनुभव न हो।
पर हम लोग सशक्तिकरण के नाम पर करते क्या है,
कॉलेज के बाहर लड़कियों को लड़के छेड़ते है, वहां पुलिस लगा दो
दफ़्तर में महिलाओं को शोषण होता है, वहाँ भी किसी कमेटी का गठन कर दीजिए।
बेटी को स्कूल जाना है तो बड़े भाई व अन्य को कवच बना जिम्मेदारी उसे सौंप दी।
शादी कर रहे है तो बेटी को अगले घर परेशानी न हो, तो दहेज के बड़ा सा टोकरा लाद दिया।
इन बैसाखियों के सहारे दे दिए ताकि वह अपना जीवन सुखद बना सके। क्या ये ही है महिला सशक्तिकरण।
कल कोई बैसाखी नहीं हुई तो वह महिला फिर स्वयं को असहाय महसूस करें।
सहारा चाहे पुरुष हो या औरत उसे केवल कमज़ोर बनाता है सशक्त नहीं। आपका पुत्र क्यों सशक्त बनता है क्योंकि बचपन से उसके जहन एक ही बात डालते हो ये तो लड़का है कर लेगा बस वह फूक जिंदगी भर उसे उड़ाए रखती है और उस लड़की जिसे कहते है ये तो लड़की है उसको सोने के पिंजरे में कैद कर देते है। कोमलता के नाम पर उसे परिवार की सबसे कमजोर कड़ी बना दिया जाता है। जिसने सही बात कर दी तो उसका मुँह चंद खोखली मिसालों से बन्द कर देंगे कि नारी तो मजबूत है जो बच्चों को जन्म देती है सर परिवार संभालती है इत्यादि बड़ी बड़ी बातों से उसके वजूद को, भावनात्मक परत से ढक दिया जाता है।
महिलाओं को अगर सक्षम बनाना है तो वास्तविकता में बचपन से उनके साथ वही व्यवहार करना होगा जो एक पुरुष के साथ होता है कोई भी ऐसा विन्रम व्यवहार कि वो लड़की है नहीं कर सकती उसके अंदर हीनता को जन्म देना है। अगर परिवार का पुरुष ही उसका सरंक्षक होता तो महिलाओं पर अत्याचार के ज्यादातर मामले में पुरुष परिवार से या रिश्तेदार नहीं होता।
कानून का फायदा भी वो तब उठा सकती है जब उसमें पुरुष के विरुद्ध जाने कि आत्म शक्ति का एहसास होगा।
मेरी उक्त बातें सब निर्रथक है अगर अब भी आप लड़की या महिला को मजबूत बनाने की बजाए उसे सरंक्षण की बैसाखी देना चाहते है। भगवान द्वारा ऐसी कोई कमज़ोरी नहीं दी गई कि महिला पुरुष की ताकत का मुकाबला नहीं कर सकतीं। समाज में अनेक ऐसे उदारहण है जा महिलाओं ने अदम्य साहस का परिचय दिया उसका मुख्य कारण उनकों बढ़ने के लिए सामान अवसर प्रदान करना था।
औरत को सम्मान के साथ होंसला दीजिए, सहारे की बैसाखी कमज़ोर बनाती है इंसान को असली पहचान उसकी समाज में लड़ने की हैसियत दिलाती है।
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