शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

बजट 2018: युवाओं का देश और युवा ही नहीं।

न मैं कोई अर्थशास्त्री हूँ , न कोई राजनीतिज्ञ
हाँ एक ऐसा देशवासी हूँ जिसकी उम्मीद होती है कि ख़ुशहाली सबके हिस्से आए, और उसका एक ही रास्ता होता है सबके जीवन यापन हेतु रोज़गार, नोटबन्दी, GST इत्यदि ऐतिहासिक फैसलों के बावजूद सरकार रोज़गार के अवसर देने में पूर्णतः विफल रही। इस आख़िरी बजट से उम्मीद थी शायद युवाओं के लिए कोई सौगात आएगी।

हालांकि सरकार ने गत वर्षों में स्किल इंडिया (ddukgy) नाम की योजनाओं से नए रोजगार सृजन की कोशिश की लेकिन अंतिम चरण में वो भी अन्य सरकारी योजनाओं की तरह लक्ष्य पूरा करने की होड़ में केवल खानापूर्ति बन कर रह गई। युवाओं को रोजगार के नाम पर मार्केटिंग कंपनीयों के शोषण के बाजार में झोंक दिया गया जोकि 5000 से 7000 के वेतन के रूप में लॉलीपॉप साबित हुई।
सरकार को चाहिए कि योजनाओं का किर्यान्वयन करते हुए लक्ष्य पूरा करने की होड़ की बजाए गुणवत्ता पर ध्यान दें। वोटबैंक की राजनीति देश को आगे बढ़ाने की बजाए खोखला बनाती जा रही है। आरक्षण जैसे मुद्दों की वजह से पहले ही समाज में युवाओं में नई खाई बनती जा रही है। एक शोषण को ख़त्म करने के रास्ते हम नए शोषण को जन्म दे रहे है। वो दिन दूर नहीं कब इस देश में आरक्षण को ख़त्म करने के लिए व्यापक आंदोलन होने के आसार है। युवाओं को भी कुछ मुद्दों पर निज हित को भुलाकर सामूहिक हितों को प्राथमिकता देकर फैसले लेने होंगे। शायद तब ही इनके लिए कोई सरकार संजीदगी से फैसले ले।

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