बात शुरू कहाँ से करूँ समझ नही आ रहा, उनके वक्तव्य से नजर आ रहा है कि जहां में सबसे बड़ा दोस्त का दुश्मन में ही हूँ। मैं शायद इस वजह से भी मुझ में खामियां हो क्योंकि मैं में ज्यादा रहता हूँ, मेने अक्सर दोस्तों को समझाने की कोशिश कि कौन अच्छा है कौन बुरा, तुम्हारे सामने जो अच्छे बनते है वही पीठ पीछे आपकी बुराई करते है, बस मेरा ये गुनाह ही था कि मैं गुनाहगार हो गया। या तो वो उनके इतने प्यारे थे कि मेरी बातें महत्वहीन हो गयी या फिर उनको भी अच्छे से पता है पीठ पीछे बुराई होती है मगर किसी का कुछ किया नही जा सकता , मानव प्रवृति ऐसी है। जो भी है पर मुझे चोट बहुत लगती है, एक सत्य ये भी है कि मेरी चोट का मूल्य वहां नही हो सकता जहां दोस्त को खुद की असुविधा हो। कोशिश जारी करने लगा हूँ कि अब किसी को भी किसी के पीठ पीछे के कथन को न दोहरा सकूँ। दोस्ती के पैमाने पर में जीरो हो चुका हूँ, क्योंकि चुनिंदा दोस्तों में से आज कोई मेरे पास नही, एक इल्जाम ये भी आया कि मैं दोस्त लाभ के लिए बनाता हूँ ह्म्म्म मानता हूँ अकेलेपन को दूर करने के सिवा कोई ऐसा स्वार्थ न था जिसके लिए मेने दोस्त बनाया हो, फिर भी आज कठघरे में खड़ा कर दिया गया।
इतना सत्य है कि दोस्तों से मेरा मोहभंग भी जब हुआ मुझे उनकी सख्त जरूरत थी और वहां न मिले, इसके कारण तो सही भी है मुझे लाभ के लिए दोस्त चाहिए था पर जो नराज है वो भी समझे क्या उनका कोई लाभ या स्वार्थ न था। मेरा तो कल भी वही व्यवहार था और आज भी वही है, जो प्रेम से बोले तो कभी ख़ामोश नही रहता पर जब आप तानों के बाण से बतियाओगे तो कहां से शब्द निकलेंगे, जब दिल ही घायल हो चुका होगा, फिर इल्जाम आएगा तुम शब्दो के माहिर हो,अरे वो शब्द भी तो दिल से निकलते है वो भी तो मेरे है, जब दिल दुखाने वाले शब्द मेरे है तो मरहम वालों पर क्यों यकीन नही करते दोस्त। मेने जिसे दोस्त माना आज तक उसका बुरा न चाहा, हां जो खामियां मुझे लगती शायद उनपर विचार किया हो लेकिन कभी बुरा नहीं चाहा, पर मेरे दोस्त कुंठित होकर इतना बुरा कह देते कि रब्ब से मौत ही मांगना बेहतर लगता है किसी एक का भी दिल दुखाया तो जीवन किस काम का....
लाख बुरा हूँ मैं... पर तेरी बुराई न चाहूँगा
तुम बेशक़ कत्ल कर दो मेरा...उफ़्फ़ न होगी
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