ज़िन्दगी मुस्कराना चाहती है, पर होंठ है की सीए गए
परिंदों सा उड़ना था हमे , पर- पर क़तर दिए गए
तैरना चाहा तो दरिया सुख कर नाले बन गए
दौड़ना चाहा तो बेड़िया डाल दी गयी
कुछ न चाहा था सिवा सकूँ के, पर वो भी न मिल सका
कुदरत देती है वो जिनके सहारे हम न चल सके
जो थे हमारे सहारे वो कुदरत से मिल न सके
रखता में संभाल उन कड़वी यादों को ,
ताकि हर पल मीठा लग सके नहीं
तो हमे ता उम्र गम ही मिले
आज तो गम भी दोस्त नजर आते है,
और ख़ुशी से नजर चुराते है
टूट गया में लड़ता हुआ इस ज़माने से ,
करता नहीं कुछ सिवा नजरे चुराने से.
लगता है मुझे ही जीना न आया ,
वरना ज़माने ने कहां मुझे सताया .
वो तो और था उनके नजरिये से मेरा नजरिया
वरना जमाना तो बरसो से है
हम तो कल आये थे और आज है तो कल चले जायेंगे ,
पर ये तो परसों भी है
दुखाया हो किसी का दिल तो माफ़ करना ,
मैल दिलो के साफ़ करना
छूट गए है हम से तो ,
वो सारे कारज आप करना'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
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