हर कोई दीवाना हो जाता है
उम्र का वो लम्हा ही तड़पता है
इंसान पागल सा हो जाता है
Sochta hoon ki har pal likhoon par likhne baithta hoon to wo pal hi gujar jata hai
जिस्म नोच लिया है तुमनें, यक़ीन नहीं होता होगा तुम्हे तो क्योंकि अन्धे हो चुके हो ख़्वाहिशों के स्वार्थ में और झूठी शोहरत की आस में, मग़र मेरा जिस्म का कतरा कतरा रोज तुम्हारी बर्बरता की भेंट चढ़ रहा है। मेरा दिल समझ नही पा रहा कि उसे सजा ख़्वाहिशों की मिली है या उसकी नेकदिली की जो एक रंग बदलते व्यक्तित्व पर उसने आँख बंद कर भरोसा कर लिया और फिर एहसास ऐसा दिलाया कि ग्लानि से मेरा मन भर दिया जैसे मुझ से बुरा व्यक्ति इस धरती पर न कोई हुआ है न कोई होगा। कमाल का व्यक्तित्व है उनका कि सभी कर्तव्य मेरे लिए छोड़ दिए और अधिकारों का हक स्वयं के लिए सुरक्षित रख लिया।
वास्तव में समय हाँ जी की हामी का है, काश मुझे भी ये गुण मिल गया होता तो मैं भी रिश्तों में सफल हो पाता मग़र मुझे उसूलों और अपनों को सही रास्ते पर चलाने की पुरातन विचारधारा सबसे अलग कर देती है। आज कोई भी अपनी बुराइयों को नही सुन सकता, और मुझे बुरी आदत है सब साफ साफ कह देने की, भला फिर कौन मुझे पसंद करता। ख़ैर छोड़िए समस्या यह नहीं है समस्या है जो कल मेरे साथ थे उनमें हजार बुराइया थी आज जब उन्होंने ने हाथ थाम लिया तो सब पवित्र हो गए। अजीब दास्तान है वर्तमान के छलावे की। आज की तिथि में मेरा न कोई उद्देश्य, न कोई मित्र, न कोई ध्येय है। जीवन उसके दुष्चक्र में इतना प्रभावित हुआ रोज मानसिक रूप से क्षीण होता जा रहा हूँ। कोशिश रोज करता हूँ इस प्रताड़ना से बाहर आने के लिए अच्छे बुरे सभी विकल्प तलाश रहा हूँ। मग़र अंधकार की इस दुनियाँ में कोई आशा की किरण नजर नहीं आती। शायद मैं आवश्यकता से अधिक सोच रहा हूँ क्योंकि जिनके लिए सोच रहा हूँ उन्हें तनिक भी प्रभाव नही पड़ता। वैसे पड़ना भी नही चाहिए उनका मकसद और उद्देश्य तो सार्थक हुआ है वो अपनी जगह शत प्रतिशत सही है। जीवन में वो सब व्यवहारिक रहे मुझे ही मित्रता व अपनेपन का शौक चढ़ा था अब ठगा हुआ सा दोष उनमे ढूंढ था हूँ जबकि ख़ुद कुल्हाड़ी पर पैर मार दिया मेने, और अब इन जख्मों का कोई इलाज नहीं क्योंकि घाव इतने गहरे जो हो गए अब तो मृत्यु शैय्या ही इन सब व्यर्थ के विचारों से मुक्ति दिला सकती है। वो हालांकि हमारे हाथ नहीं मगर तब तक ये जिस्म सिवाए लाश और कुछ नहीं। गुनाहगार हूँ किस किस दिल का, जो वक़्त नहीं कट रहा मुश्किल का ,
न कोई मित्र
न कोई शत्रु
जरूरत से बंधे है रिश्ते आजकल
पिछले कुछ दिनों से दफ्तर में काफी उठा पटक के बाद जिसको जो चाहिए था वो मिल गया, सता के चाहने वालों को कुर्सी, दौलत के पसंद करने वालों को अधिकार और तन्हा रहने वालों को तन्हाई, कुल मिलाकर सब खुश है अपनी जगह। ईश्वर करें यह स्थिति बनी रहे ताकि सब खुशी खुशी अपनी नौकरी कर ले क्योंकि नौकरी की आवश्यकता सबको है। बस कुछ लोगो को नौकरी से भी ज्यादा बहुत कुछ चाहिए, और ईश्वर उनको वो सब दे भी दे, मगर किसी का अहित न हो। और मेरी भी प्रार्थना है कि मुखोटों से भरे सँसार से दूर रखना मुझे ईश्वर अगर वास्तविकता में आपका वजूद है तो जो कि मुझे लगता नहीं। क्योंकि सामाजिक परिवेश में सफल वही है जिसका निशाना सही है।
हरियाणा प्रदेश में जिला करनाल एक खास ही पहचान रखता है, देश व प्रदेश की राजधानी से समान दूरी पर स्थित इस शहर का नाम महाभारत के अहम पात्र कुन्ती पुत्र कर्ण के नाम पर पड़ा था। जिला करनाल को ऐतिहासिक पहचान के अतिरिक्त भी धान की अधिक पैदावार के कारण से जाना जाता है धान के कटोरे के रूप में पहचान वाला अभिमान ही अभिशाप बन गया है। धान की अधिक बुआई के कारण घटता जलस्तर जिला करनाल के स्वर्णिम इतिहास पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है कि आने वाली पीढ़ी को हम समृद्धि की और ले जा रहे है कि विनाश की और। गहराया जल संकट गाँव शहर प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर गहन चिन्ता का विषय बन चुका है। केंद्र सरकार द्वारा जल शक्ति अभियान की शुरुआत हुई तो जिला प्रशासन द्वारा भी इस कड़ी में ठोस कदम उठाए जाने के लिए सयुंक्त सचिव व उपायुक्त महोदय की अध्यक्षता में अहम बैठकों का आयोजन किया गया। प्रारंभिक बैठकों में जल संकट के निम्न कारण निकल कर सामने आए।
1. भूमिगत जल का अंधाधुंध दोहन
2. प्राकृतिक जल संचय स्त्रोतों पर अतिक्रमण
3. जनमानस में जल संकट के प्रति जागरूकता की कमी
4.
5.
उक्त कारणों के चिन्हित करने के उपरांत अब बैठकों में चर्चा का विषय था कि समस्यायों का निदान कैसे हो। तो जिला प्रशासन ने जन जागृति प्राथमिक तौर पर मुख्यतः निम्न समाधानों पर बल दिया
I. वर्षा जल संग्रहण
II. जन जन जागृति अभियान
III. जल संचय संसाधनों का निर्माण व जीर्णोद्धार
IV. अनाधिकृत बोरवेल पर प्रतिबंध
V. पौधरोपण
उक्त सभी समाधान के लिए आगामी 2 माह में निम्न कार्य करवाये जाने के लिए रूपरेखा तैयार की।
1 प्राकृतिक संसाधनों की पुनःस्थापना:- जिला करनाल में कुल 382 ग्राम पंचायतों के 435 गांवों में कुल 987 तालाब है जिनका प्रयोग पशुओं के पानी व कृषि कार्यों के लिए किया जाता था। आधुनिकता वाद के दौर में बोरवेल के अत्याधिक इस्तेमाल से यह तालाब जल प्लावन व पशुओं के मल व अन्य गीले कचरे के कारण गांवों की भयंकर समस्या बन गए है। जिला करनाल ही था जिसने देश प्रथम स्तर पर तीन तालाब की संकल्पना की शुरुआत की जिसको पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय द्वारा काफी सराहना की गई व पूरे देश में इसे लागू करने के निर्देश भी जारी किए गए। जिसके तहत जिला करनाल में जुलाई 2019 तक कुल ........ तीन/पंच ताल का निर्माण हो चुका है तथा .......तक कुल .........पंच ताल का लक्ष्य रखा गया है। जिसकी अनुमानित लागत रुपये.....है। उक्त पंच ताल की वजह से जलप्लावन की समस्या का पूर्ण रूप से निदान हो गया है।
2. वर्षा/छत जल का संचयन करना:- अक्सर बरसात के दिनों में पानी का सड़कों पर भराव देखा गया है। जिसके लिए वाटर रिचार्ज पिट का निर्माण करके निदान किया जा सकता है। जिला करनाल में जुलाई 2019 माह तक कुल .... रिचार्ज पिट का निर्माण सार्वजनिक भवन पर तथा कुल .... का निर्माण निजी भवनों में किया जा चुका है जिससे ..... क्यूबिक मीटर पानी का संचय किया जा चुका है। जिसका कुल खर्च रुपये ....था व अगले दो माह के लिए कुल .....रिचार्ज पिट के नवीकरण का लक्ष्य रखा गया है जिसकी अनुमानित लगता .....रुपये है तथा .....क्यूबिक मीटर पानी का संचय किया जा सकता है।
3. छोटी नदी व नालों की पुनः स्थापना:- अतिक्रमण के चलते काफी नदी व नालों पर कब्जा कर लिया गया अथवा देखरेख के अभाव में उनका मूलभूत ढांचा धूमिल होने के कगार पर है। इसलिए प्रशासन ने आगामी दिनों में कुल ....नदियों के पुनः स्थापना का लक्ष्य रखा गया है जिसके लिए अनुमानित लागत रुपये...का पूर्वानुमान है।
4. सोक पिट का निर्माण:- जिला करनाल में अधिकांश क्षेत्र रेतीली भूमि है जिसपर सोक पिट का निर्माण के द्वारा दूषित जल का निपटान किया जा सकता है तथा भूमिगत जल के स्तर में सुधार किया जा सकता है। जिला करनाल में अब तक कुल ....सामुदायिक सोक पिट व कुल ...निजी सोक पिट का निर्माण किया जा चुका है जिस पर कुल ....रुपये की राशि खर्च की गई है। .....माह तक जिला करनाल में कुल .....सोक पिट के निर्माण का लक्ष्य रखा गया है जिसकी अनुमानित लागत ....रुपये है।
एक हफ्ता हो गया घुटते घुटते पर किस से कहें ये समझ नही आ रहा, ऐसा लग रहा है कि जैसे सारी दुनियाँ ही मेरे खिलाफ हो गई है, शायद इसलिए लग रहा है जिस दफ्तर में 6 साल से बिना उफ्फ तक किए जिन लोगों के लिए काम किया वो आज विरोध में आ खड़े हुए है उन्हें निज स्वार्थ में अच्छे बुरे का फर्क नजर नही आ रहा, मेने जब जॉइन किया था तब से लेकर आजतक अपने इंचार्ज की कभी किसी बात से मना नही किया, यहाँ तक वो सारा काम मुझ पर छोड़ अपनी पार्टियों में मशरूफ़ रहते और आज उन्हें मुझ में खामियाँ नजर आ रही वो भी सिर्फ उनकी किसी खास कर्मचारी की परेशानियों की वजह से, अब अधिकारी कोई फैसला लें, ये उनका अधिकार है मगर स्थायी कर्मचारियों को वक़्त के साथ इतना घमंड हो जाता है कि वो स्कीम और उनमें लगे अनुबंध कर्मचारियों को अपनी जायदाद समझने लगते है, मेरी खामी यह कि मैने किसी को पलट कर जवाब देना नही सीखा, अकेले घुटता रहता हूँ।
बात नई नही है पिछले अधिकारियों के समय भी दो बार ऐसा हो चुका है कोई भी जिम्मेदारी भरे कार्य आते है तो काम के लिए सबसे आगे कर देते है जब अपनी सूझबूझ से उस कार्य में सफलता मिलने पर अधिकारी का प्रोत्साहन मिलता है तो सबके सीने पर साँप लौटने लगे जाते है, चुनाव के दौरान ऐसा कोई कार्य नही जो न किया हो एक ऑपरेटर, ड्राइवर, स्टेनों व अन्य कई कार्य जो शायद मेरी क्षमताओं से परे थे पर मैने माथे पर शिकन आए बिना सब बखूबी निभाने की कोशिश की, लेकिन उस दौरान भी बरसो से काम कर रहे मेरे सहकर्मियों ने भी एक प्रतिशत सहयोग नही दिया, उनसे अधिकारी के कहने पर कोई रिपोर्ट मांगने चला जाता तो उनके क्रोधाग्नि से अपमान के घूंट पीते हुए भी चुनाव का कार्य पूर्ण करवाया। हालांकि मैं ऐसी कड़ी नही था कि मेरे बिना चुनाव में कोई फर्क पड़ता क्योंकि अधिकारी द्वारा होमवर्क इतना बेहतर था कि वो सब सामंजस्य बिठा लेते, चलो किसी तरीके से चुनाव तो निबट गया लेकिन उसके बाद एक मीटिंग के दौरान अधिकारी द्वारा तारीफ किये जाने से सभी के मुँह और मुझ से चिढ़ गए, इस दौरान तो वो भी लोग चिढ़ गए जो सहकर्मी के साथ दोस्त होने का भी दावे कर रहे थे, सब भुला दिया यह सोचकर कि चलो इंचार्ज और अधिकारी के मापदंडों/आशाओं पर तो खरा उतरा हूँ मुझे कार्य करने में खुशी मिलती है और उसकी पहचान हो जाए तो खुशी दुगनी हो जाती है। लेकिन पिछले सप्ताह कमर में अचानक दर्द हो गया तो इंचार्ज के पास छुट्टी भिजवाई तो उसने साफ मना कर दिया यह कहकर कि इसका तो रोज का काम है मैं नही मंजूर करता सीधे अधिकारी से करवा लें, अब ये बात कमर दर्द से भी ज्यादा दर्द दे रही थी, यार जिस व्यक्ति के एक इशारे पर दिन रात काम किया, कभी यह नही सोचा कि काम मेरा है या नहीं, आज उसने यह बात कह दी। किसी भी तरह एक दिन की छुट्टी काटने के बाद, दफ्तर आ गया, अभी भी कमर से सीधा खड़े होकर चला नही जा रहा था तो एक और नया खंजर सीने में चला दिया, अधिकारी द्वारा छुट्टी वाले दिन इंचार्ज के खास कर्मचारी को एक अन्य कार्य की जिम्मेदारी दी दी गई और शायद इंचार्ज की अधिकारी से इस बारे बहस भी हो गई हो लेकिन वो सारा गुस्सा कमरे में आकर मुझ पर और एक सहायक अकाउंटेंट पर उतार दिया। और रोज छोटी छोटी बातों पर तानों जैसा व्यवहार करने लगे। जैसे कि मैं कोई बड़ा ही गुनाह कर आया हूँ, जब इतनी परेशानी होती है इनको फिर अधिकारी के सामने मत भेजे, इनको आराम भी चाहिए और फिर सम्मान भी और शायद और कुछ भी जो उन्हें अधिकारी विश्वास में न होने के कारण मिल नही पाता। मन यो करता है छोड़ दूँ नौकरी पर सामाजिक ढांचा ऐसा है कि परिवार की सुख सुविधाओं के लिए काम तो करना पड़ता है, और समस्याएं तो सब जगह है पर मेरा शायद रिएक्ट करना कुछ ज्यादा हो, पर घुटन को दूर करने के लिए लिखना भी जरूरी था।
बल्कि दफ्तर में चल रही समस्याओं के कुछ समाधान भी थे मेरे मन में, मेने तो इस डर से अधिकारी से एक भी सुझाव शेयर नही किया कि कल को मेरे पीछे और पड़ जाएंगे कि जो हो रहा है सब मेरी मर्जी से हो रहा है। कभी कभी इनकी विकृत मानसिकता पर हंसी भी आती है।
बस ईश्वर से यह ही प्रार्थना करता हूँ मेरी सहनशक्ति को बरकरार रखें ताकि कभी किसी से मैं दुर्व्यवहार न करूं क्योंकि जब क्रोध के पल चले जाते है तब इंसान को ज्यादा पछतावा होता है। कोशिश करूँगा कि लिखने के पश्चात कल स्वच्छ मन से अच्छा कार्य कर सकूँ क्योंकि अशांत मन से सब गलत ही होता है।
NDTV पर अभी एक रिपोर्ट आ रही थी कि 45 दिन पहले उड़ीसा में फोनी तूफान आया जिसमें ज्यादा दर्शाया गया कि ज्यादा जीवन को हानि न होने के कारण राष्ट्रीय स्तर से यह मुद्दा गायब हो गया कि जान कि हानि न हो पर मॉल की जो हानि हुई उसकी आपूर्ति नही आज तक हुई। लोग अब भी जद्दोजहद कर रहे है दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए, रिपोर्ट में कुछ दृश्य थे कि घर की लकड़ी की छत थी जिस से कुछ लकड़ी की बल्लियों का हिस्सा नीचे गिर गया, कोई दीवार का हिस्सा कच्चा था तो वो गिर गया। ऐसे छोटे छोटे विषय थे जिस से रिपोर्टर ने दर्शाया कि उनका जीवन कितना कष्टदायी है स्वभाविक है वो उनके जीवन की तुलना अपने वातानुकलित कमरे के जीवन से कर रहा था।
सरकार से मदद नही मिली, इनको राशन नही आया, पैसे नही मील इत्यादि।
मेरा वर्शन सुनने से पहले इतना समझ लीजिए कि मेरी नकारात्मक बातों में दूरगामी सकारात्मकता है जो व्यक्ति को तब समझ आती है जब वह अपनी महत्वकांक्षी सोच की वजह से सब खो चुका होता है।
अब वो पत्रकार दिखा रहा था कि उन लोगों के पास झोपड़ी या कच्चे मकान थे तो जायज है तूफान से पहले भी वैसे ही मकान थे बस उनकी छत और दीवार सलामत थी। जाहिर है कि ऐसे गरीब परिवार के लोग काफी मेहनतकश होंगे, उनका जीवन कड़े परिश्रम से जुड़ा होगा। तो क्या वो मेहनतकश आदमी 45 दिन में अपने झोपड़े की 4 बल्लियों को ऊपर रख दोबारा उनपर घास फूस नही रख सकता, बिल्कुल रख सकता है मगर कुछ महत्वकांक्षी लोग उन्हें सिखाते है कि मत बनाओ नही तो कोई सरकारी मदद नही आएगी इत्यादि प्रोलोभनो से उसकव भ्रमित कर देते है। ये तो थी गरीव परिवारों की बात जिन्हें न शिक्षा मिली न दीक्षा।
उस से थोड़ा ऊपर जाते है निम्न मध्यम वर्गीय परिवार जिनका गुजारा दो कमरों के मकान में बेहतर हो रहा होता है कि अचानक उनका कोई समृद्ध रिश्तेदार आता है जो उन्हें महसूस करवाता है कि इतने गर्मी के मौसम में तुम कैसे रह लेते हो हम तो अपने घर कूलर और ac चलाकर रखते है, ऐसे नुकीले व्यंग्य चलाकर उन्हें हीनता का बोध कराएगा कि उनको लगेगा वास्तविकता में उनके पास तो भौतिक सुख ही नही है। ऐसी भ्रांतियां समाज में असंतोष व दिशाहीनता पैदा करती है।
अच्छा कभी आप ध्यान देना कुछ क्षेत्रों में लोगों के मकानों से बेहतर वहाँ का मंदिर/मस्जिद/चर्च मिलते है, जबकि वह भी उन लोगो द्वारा बनाया गया है जो कि बेहतर घरों में नही रहते है । जानते हो कैसे?
क्योंकि बचपन से उन्हें शिक्षा मिली कि भगवान का स्थान सबसे ऊंचा है और उसका घर भी तुमसें बेहतर ही होगा जिसके लिए वो सब मिलकर दान व श्रम से भव्य निर्माण करते है।
70 वर्ष पूर्व इस देश में कोई सरकार नहीं थी जो मदद करती थी लेकिन तब भी लोग भव्य मकान बनाकर व बेहतर जीवन जीते थे। मदद के लिए वो एक दूसरे का हाथ बनते थे। क्योंकि जब व्यक्ति समाजिक प्राणी था। उसे भरोसा उस सामुदायिक ढाँचे पर था जहाँ वो सब मिलकर सभी समस्याओं का स्थानीय हल निकालते थे किसी करिश्में का इंतजार नही करते थे।
खैर छोड़िए बात हो रही थी फैनी तूफान की और उसकी तबाही की, रिपोर्टर आगे दिखाता है कि एक संस्था कब्बडी टीम लोगों को रोज 2 समय का खाना वितरित कर रही है और लोग सभी एक स्थान पर खाना खा रहे है। सभी कहेंगे कि बड़ा पुण्य का काम कर रहे है इसके लिए उनकी सराहना होनी चाहिए। जैसे वो रिपोर्टर कर भी रहा था।
लेकिन यहाँ तस्वीर कुछ अलग भी हो सकती थी, शहर से एक व्यक्ति आया गाँव में उसने लोगो को इकठ्ठा किया कि गाँव में सरकार की मदद आएगी , जो करना है हम सब लोगो को मिलकर करना है, उसने सभी संसाधनों पर गौर किया और पाया कि गाँव में आजीविका के लिए पर्याप्त संसाधन थे लेकिन मनोबल, ज्ञान और दिशा के अभाव में सभी किस्मत को कोस रहे है। घर तैयार करने को सभी जरूरी सामान था लेकिन बनाने की कोई शुरुआत नही कर रहा था वजह थी किसी घर में कुछ युवा नही थे तो किसी घर में पर्याप्त समान नही था। हर घर में मवेशी व अन्य जरूरतों के समान थे जो कि शहर में उचित दामों पर मिलते है। तूफान ने तो तबाही शहर में भी मचाई थी लेकिन वहाँ के लोग कैसे जल्दी संभल गए सरकार तो वहाँ भी कोई सहायता लेकर नहीं पहुँची थी। लेकिन उनके पास एक ही लक्ष्य था कि खुद मेहनत से ही बेहतर जीवन बन सकता है।
शहर के उस व्यक्ति ने गाँव के लोगो को संगठित किया, और आकलन किया कि क्या संसाधन उपलब्ध है और कितनों की आवश्यकता है। कहाँ से धन एकत्रित हो सकता है और कहां से श्रम। गाँव में पशुओं की कमी नहीं थी और न पशुओं के लिए घास की, तो एक सीमा तक दूध जरूरतों से ज्यादा था जिसको शहर में बिक्री कर धन कमाया जा सकता था जिसके लिए उसने चयनित युवाओं की टीम बनाई। फिर कुछ युवाओं की टीम घरों के ढांचे परिवर्तन के लिए बनाई। इस तरह से सभी कार्यों को दिशा प्रदान करते हुए वहाँ के लोगों को स्वालम्बी बना दिया। और सीमित समय की भीख से छुटकारा दिला दिया।
विकास एवं पंचायत विभाग में कार्य करने के कारण अक्सर ग्रामीण क्षेत्र में दौरा करने का अवसर मिलता रहता है, कल इंद्री के गाँव गढ़ी जाटान का दौरा किया वहां पर पंचायत भूमि की पट्टे पर देने के लिए नीलामी थी। गाँव के काफी इच्छुक लोग बोली देने हेतू पंचायत भवन के प्रांगण में मौजूद थे, बोली का कार्य सुचारू रूप से चल रहा था लोग मखौल करते हुए बोली लगा रहे थे, तब मेरी नजर एक अधेड़ उम्र के धूप में झुलसे हुए, माथे पर शिकन की लकीरें लिए व्यक्ति पर पड़ती है, वह कुछ बोल नही रह था मगर 2 से 3 कश में लगातार बीड़ी फूंक रहा था। प्लाट दर प्लाट बोली लग रही थी और उसकी काया बीड़ी से सुलग रही थी , कुछ समय पश्चात एक 20 बीघे प्लॉट की बोली आई तो उसकी भौहें तन गई, पिछले वर्ष की अपेक्षा में 1000 अधिक राशि से बोली शुरू की गई तो सबसे पहले बोली लगाने वाला व्यक्ति वही था, प्रतीत होता था कि जैसे उसे कोई चाभी मिलने वाली है जिस से उसकी जीवन की सभी परेशानियां खत्म होने वाली हो, खैर जैसे जैसे मेरे जहन में द्वंद्व चल रहा था वैसे बोली कि प्रक्रिया आगे बढ़ रही थी अब 20 प्रतिशत बढ़ोतरी के उपरान्त बोली मात्र 100-100 रुपये कि सुस्त चाल से चलने लगी थी, उधर मेरा मन सवाल कर रहा था कि उसकी कौन सी ऐसी समस्या है जिसका अंत ये 20 बीघा जमीन करने वाली थी, गाँव में मुख्य समस्या बच्चों के विवाह की होती है। सामाजिक परिवेश को ध्यान रखते हुए सबके खानपान व दहेज के लिए अच्छी रकम जुटाने की जुगत लगानी पड़ती है। ज़िन्दगी के कुछ बरसो की कमाई विवाह में तो कुछ बरस की मकान बनाने में ही लग जाती है। समय के साथ शिक्षा बढ़ने के कारण, ग्रामीण पैसा शिक्षा पर भी खर्च करने लगे है मगर इसकी वजह से मकान और शादी में पैसा पहले की अपेक्षा में और ज्यादा लगने लगे गया है। बच्चें जितने शिक्षित चकाचौंध के दौर में उतना ही खर्च करना पड़ता है। खैर बोली का दौर चल रहा था कि वह जेब टटोलने लगा कि देखा बीड़ी का मंडल खत्म हो गया, बेचैनी भरे चहेरे से उसने साथ वाले ग्रामीण से गुहार लगाई तो उसने उसे एक सिगरेट थमा दी, सिगरेट की अग्नि थी कि उसकी जरूरतों की बोली कि दरों में 100 रुपये से 1000 रुपये का उछाल आया गया, अब उसने आवेश में आकर, पिछले वर्ष से 40 प्रतिशत अधिक राशि पर जमीन पट्टे पर ले ली। अब उसके चेहरे के भाव खुशी के नहीं बल्कि भय व आशंकाओं के थे, उसने एक समस्या को दूर करने के लिए जीवन में दूसरी समस्या को पाल लिया था। अब नीलामी की राशि का भी इंतजाम बैंक अथवा किसी आढ़ती की चौखट पर अंगूठा लगाकर करना था। खुद के पास इतनी राशि होती तो एक समस्या तो खत्म हो ही जाती।
मेरे जीवन में तो उसका किरदार कल तक ही था लेकिन मेरे जहन में उसकी चिन्ता हमेशा के लिए घर कर गई, कि जाने वो कौन सी समस्या होगी जिसके लिए उसने अपने जीवन को तपते तेल की कड़ाही जैसे गर्म खोलते तेल में छोड़ दिया, अब मौसम की मार, औने पौने दाम का डर, कुदरत का कहर, ब्याज का पहर इत्यादि विषैले फनों से बचकर, उसकी परेशानियों का हल सुगम हो पाएगा या एक और किसान अगले बरस पेड़ पर लटक जाएगा। ✍️👁️👁️
वोट करें चलो वोट करें
इस 12 मई को महापर्व में रंग भरे
वोट करें चलो वोट करें
लोकतंत्र है शान हमारी
दुनियाँ में व्यवस्था सबसे न्यारी
आओ इसे मजबूत करें
वोट करें चलो वोट करें
इस 12 मई को महापर्व में रंग भरे
वोट करें चलो वोट करें
करनाल के जन जन नें ठाना है
महापर्व में वोट डालकर आना है
वोट करें चलो वोट करें
इस 12 मई को महापर्व में रंग भरे
वोट करें चलो वोट करें
जाति, धर्म और रंग भेद को मिटाना है
निष्पक्ष योग्य व्यक्ति को आगे लाना है
वोट करें चलो वोट करें
इस 12 मई को महापर्व में रंग भरे
वोट करें चलो वोट करें
देखने का नजरिया भी आवश्यक है हो सकता है आप मुझ से बेहतर नज़रिया रखते है मगर इस घटना पर अलग संदर्भ है उसके पीछे की वजह बचपन से जो देखा वह है, न कि चंद दिनों की सियासत।
बचपन में मेरी जाति के ही इस मोहल्ले के लोग, दूसरे मोहल्ले के लोगों से भीड़ जाते थे, उनकी लड़ाई की वजह जब जाने तो सबको हंसी आती थी कि किसी एक ने किसी दूसरे के हुलिए पर या बेवकूफी पर तंज कसा दिया और उसे मोहल्ले की इज्जत से जोड़ दिया। ये सफर खत्म न हुआ उम्र के साथ बढ़ता गया।
अब कॉलेज पहुँचे, तो शहर 20 किलोमीटर था तो आसपास के 5 गांव के सभी बच्चे एक ही बस में जाते थे, मेरे गाँव से पहले के बच्चों को मासूमियत की वजह से, गाँव के बच्चे पागल/बोले/मेसे इत्यादि शब्दो से चिढ़ाते थे, अब सभी तो एक समान नहीं थे, तो एक दिन किसी उग्र बालक को कह दिया तो हो गया झगड़ा कि इसने मेरे पूरे गाँव को पागल कहा।
इसी क्रम में जाति, जमात, रंग इत्यादि भेद के कारण समाज में बरसो से होते आ रहे है, और समाज के जिम्मेदार व्यक्ति का कर्तव्य होता है कि वह इन झगड़ों को चिंगारी की तरह भड़काने का इस्तेमाल न करें।
उसी गाँव में और भी हिन्दू और मुस्लिम रहते होंगे, उनमें से बहुत से लोगों के आपस में प्रेम भाव होंगे, इन भड़कीली हवाओं से उनका भी सौहार्द बिगड़ता है।
मेरी उम्र और अनुभव के हिसाब से तो इस घटना की यही प्रतिक्रिया है बाकी आप विद्वान है।
ज़िन्दगी कभी ऐसी शख्शियत से मुलाकात करवा देती है कि उनसे मिलने पर जो भावनाएं या वादे आपने खुद से उनके प्रति जीवन भर निभाने के लिए किए थे आज वो उनकी महत्वकांक्षा या आपकी स्वयं की इच्छाओं का दामन, कारण जो भी है मगर खुद का अस्तित्व खतरे में पड़ गया, उस शख़्स से विश्वास/भरोसा इस तरह से टूट जाता है उसका सत्य भी झूठ और स्वयं भी झूठ हो जाता हूँ, एक दिल है कि वो मानने को तैयार नहीं होता कि वो फ़रेब से डूबा गुलाब था उसकी खुशबू भी सजावट की थी जिसे केवल ग्राहक को लुभाने को इस्तेमाल किया जाता है, दिल कहता है मेरा क्या कसूर था मेने तो चाहा था, मुझे क्यों सजा मिली, जरूरतें उसकी भी संसारिक थी और तुम्हारी भी, मुझे क्यों दर्द मिला, अब इस नादान दिल को कौन समझाए जरूरत इसकी भी सीने में धड़कने की है, अगर तुझे नापसंद है तो धड़कना छोड़ दें, सांसारिक लोग तो संसार की रीति पर चलते है, अवसर तलाशते है अवसर से ही बदलते है, दिल बेचारा अमुक खड़ा सुन रहा था, सांसारिक जीव की प्रलोभन से लिपटी जिह्वा की बातें, समझ नही आ रहा था कि सीना छोड़े कि चाहत, छन से फिर आवाज आई, टूटे दिल ने स्वीकार करली तन्हाई।