NDTV पर अभी एक रिपोर्ट आ रही थी कि 45 दिन पहले उड़ीसा में फोनी तूफान आया जिसमें ज्यादा दर्शाया गया कि ज्यादा जीवन को हानि न होने के कारण राष्ट्रीय स्तर से यह मुद्दा गायब हो गया कि जान कि हानि न हो पर मॉल की जो हानि हुई उसकी आपूर्ति नही आज तक हुई। लोग अब भी जद्दोजहद कर रहे है दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए, रिपोर्ट में कुछ दृश्य थे कि घर की लकड़ी की छत थी जिस से कुछ लकड़ी की बल्लियों का हिस्सा नीचे गिर गया, कोई दीवार का हिस्सा कच्चा था तो वो गिर गया। ऐसे छोटे छोटे विषय थे जिस से रिपोर्टर ने दर्शाया कि उनका जीवन कितना कष्टदायी है स्वभाविक है वो उनके जीवन की तुलना अपने वातानुकलित कमरे के जीवन से कर रहा था।
सरकार से मदद नही मिली, इनको राशन नही आया, पैसे नही मील इत्यादि।
मेरा वर्शन सुनने से पहले इतना समझ लीजिए कि मेरी नकारात्मक बातों में दूरगामी सकारात्मकता है जो व्यक्ति को तब समझ आती है जब वह अपनी महत्वकांक्षी सोच की वजह से सब खो चुका होता है।
अब वो पत्रकार दिखा रहा था कि उन लोगों के पास झोपड़ी या कच्चे मकान थे तो जायज है तूफान से पहले भी वैसे ही मकान थे बस उनकी छत और दीवार सलामत थी। जाहिर है कि ऐसे गरीब परिवार के लोग काफी मेहनतकश होंगे, उनका जीवन कड़े परिश्रम से जुड़ा होगा। तो क्या वो मेहनतकश आदमी 45 दिन में अपने झोपड़े की 4 बल्लियों को ऊपर रख दोबारा उनपर घास फूस नही रख सकता, बिल्कुल रख सकता है मगर कुछ महत्वकांक्षी लोग उन्हें सिखाते है कि मत बनाओ नही तो कोई सरकारी मदद नही आएगी इत्यादि प्रोलोभनो से उसकव भ्रमित कर देते है। ये तो थी गरीव परिवारों की बात जिन्हें न शिक्षा मिली न दीक्षा।
उस से थोड़ा ऊपर जाते है निम्न मध्यम वर्गीय परिवार जिनका गुजारा दो कमरों के मकान में बेहतर हो रहा होता है कि अचानक उनका कोई समृद्ध रिश्तेदार आता है जो उन्हें महसूस करवाता है कि इतने गर्मी के मौसम में तुम कैसे रह लेते हो हम तो अपने घर कूलर और ac चलाकर रखते है, ऐसे नुकीले व्यंग्य चलाकर उन्हें हीनता का बोध कराएगा कि उनको लगेगा वास्तविकता में उनके पास तो भौतिक सुख ही नही है। ऐसी भ्रांतियां समाज में असंतोष व दिशाहीनता पैदा करती है।
अच्छा कभी आप ध्यान देना कुछ क्षेत्रों में लोगों के मकानों से बेहतर वहाँ का मंदिर/मस्जिद/चर्च मिलते है, जबकि वह भी उन लोगो द्वारा बनाया गया है जो कि बेहतर घरों में नही रहते है । जानते हो कैसे?
क्योंकि बचपन से उन्हें शिक्षा मिली कि भगवान का स्थान सबसे ऊंचा है और उसका घर भी तुमसें बेहतर ही होगा जिसके लिए वो सब मिलकर दान व श्रम से भव्य निर्माण करते है।
70 वर्ष पूर्व इस देश में कोई सरकार नहीं थी जो मदद करती थी लेकिन तब भी लोग भव्य मकान बनाकर व बेहतर जीवन जीते थे। मदद के लिए वो एक दूसरे का हाथ बनते थे। क्योंकि जब व्यक्ति समाजिक प्राणी था। उसे भरोसा उस सामुदायिक ढाँचे पर था जहाँ वो सब मिलकर सभी समस्याओं का स्थानीय हल निकालते थे किसी करिश्में का इंतजार नही करते थे।
खैर छोड़िए बात हो रही थी फैनी तूफान की और उसकी तबाही की, रिपोर्टर आगे दिखाता है कि एक संस्था कब्बडी टीम लोगों को रोज 2 समय का खाना वितरित कर रही है और लोग सभी एक स्थान पर खाना खा रहे है। सभी कहेंगे कि बड़ा पुण्य का काम कर रहे है इसके लिए उनकी सराहना होनी चाहिए। जैसे वो रिपोर्टर कर भी रहा था।
लेकिन यहाँ तस्वीर कुछ अलग भी हो सकती थी, शहर से एक व्यक्ति आया गाँव में उसने लोगो को इकठ्ठा किया कि गाँव में सरकार की मदद आएगी , जो करना है हम सब लोगो को मिलकर करना है, उसने सभी संसाधनों पर गौर किया और पाया कि गाँव में आजीविका के लिए पर्याप्त संसाधन थे लेकिन मनोबल, ज्ञान और दिशा के अभाव में सभी किस्मत को कोस रहे है। घर तैयार करने को सभी जरूरी सामान था लेकिन बनाने की कोई शुरुआत नही कर रहा था वजह थी किसी घर में कुछ युवा नही थे तो किसी घर में पर्याप्त समान नही था। हर घर में मवेशी व अन्य जरूरतों के समान थे जो कि शहर में उचित दामों पर मिलते है। तूफान ने तो तबाही शहर में भी मचाई थी लेकिन वहाँ के लोग कैसे जल्दी संभल गए सरकार तो वहाँ भी कोई सहायता लेकर नहीं पहुँची थी। लेकिन उनके पास एक ही लक्ष्य था कि खुद मेहनत से ही बेहतर जीवन बन सकता है।
शहर के उस व्यक्ति ने गाँव के लोगो को संगठित किया, और आकलन किया कि क्या संसाधन उपलब्ध है और कितनों की आवश्यकता है। कहाँ से धन एकत्रित हो सकता है और कहां से श्रम। गाँव में पशुओं की कमी नहीं थी और न पशुओं के लिए घास की, तो एक सीमा तक दूध जरूरतों से ज्यादा था जिसको शहर में बिक्री कर धन कमाया जा सकता था जिसके लिए उसने चयनित युवाओं की टीम बनाई। फिर कुछ युवाओं की टीम घरों के ढांचे परिवर्तन के लिए बनाई। इस तरह से सभी कार्यों को दिशा प्रदान करते हुए वहाँ के लोगों को स्वालम्बी बना दिया। और सीमित समय की भीख से छुटकारा दिला दिया।
Sochta hoon ki har pal likhoon par likhne baithta hoon to wo pal hi gujar jata hai
शुक्रवार, 21 जून 2019
उम्मीद का टुकड़ा
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